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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] २१५ खंधपएसो, जीवपएसोऽवि सिय धम्मपएसो जांव सिय खंधपएस, खंधपएसोऽवि सिय धम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो, एवं ते अणवत्था भविस्सह, तं मा भणाहि भइयव्वो पएसो, भणाहि धम्मे पएसे से पए से धम्मे, अहम्मे पएसे से पएसे अहम्मे, पागासे पए से से पएसे आगासे, जीड़े पए से से पएसे नोजोवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे। ____एवं वयंतं सद्दनयं समभिरूढो भणइ-जं भणसि धम्मे पएस से पएस धम्मे, जीवे पएसे से पएसे नोजीवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, तं न भवइ, कम्हा ? इत्थं खलु दो समासा भवंति, तं जहा-तप्पुरिसे अ कम्मधारए अ, तं ण णजइ कयरेणं समासेणं भणसि ? किं तिप्पुरिसणं किं कम्मधारएणं ? जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसो भणाहि, धम्मे असे पएसे असे पएसे धम्मे, अहम्मे असे पएसे अ से पएमे अहम्मे, आगासे असे पएसे अ से पएसे आगासे, जीवे असे पएसे असे पएसे नोजीवे, खंधे अ से पएसे असे पएसे नोखंधे । ___एवं वयंतं समभिरूढं संपइ एवंभूओ भणइ-जं जं भणलि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेस एगगहणगहियं देसेऽवि मे अवत्थू पएसेऽवि मे अवत्थ । सेत पएसदिटुंतेणं । से तं नयप्पमाणे । (से किं तं पएसदिढतेणं ? ) * प्रदेश दृष्टान्त किसे कहते हैं ? (पएसदि8 x) * 'प्रकृष्टो देशः प्रदेशो-निविभागो भाग इत्यर्थः' अर्थात् जो अति ही सूचम हो और जिसका विभाग न हो सके इसे प्रदेश कहते हैं। ४ एतदन्यप्रतिषु नास्ति । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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