SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३ [ उत्तरार्धम] केई वएज्जा-कहिं भवं गच्छसि ? अविसुद्धो लेगमो भणइ-पत्थगस्स गच्छामि, तं च केई छिदमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं छिदसि ? विसुद्धो णेगमो भणइ-पत्थयं छिंदामि, ते च केई तच्छमाणं पासित्ता वऐजा-किं भवं तच्छसि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणइ-पत्थयं तच्छामि, तं च केई उकीरमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं उक्कोरसि, विसुद्धतरामो णेगमो भणइ-पत्थयं उकीरामि, तं च केई (वि) लिहमाणं पासित्ता वएजा-किं भवं (वि)लिहसि ? विसुद्धतराओणेगमोभणइ-पत्थयं (वि)लिहामि, एवं विसुद्ध तरस्स णेगमस्स नामाउडिओ पत्थो ,एवमेव ववहारस्सवि, संगहस्स मिउमेजसमारूढो पत्थओ, ऊज्जुसुयस्स पत्थो ऽवि पत्थो मेज्जपि पत्थो, तिरहं सदनयाणं पत्थयस्स अत्थाहिगारजाणो जस्स वा वसेणं पत्थओ निष्फज्जइ, से तं पत्थयदिळंतेणं । [(से किं तं नयप्पमाणे ?) नयप्रमाण किसे कहते हैं ? (नयप्पमाणे) जिन अनन्त धर्मात्मक वस्तुओं को एक ही अंश के द्वारा निर्णय किया जाय उसे नयप्रमाण कहते हैं,और वह (सत्तविहे पएण,) सात प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसे कि-(णेगमे ) नैगम १, ( संगहे ) संग्रह २, (ववहारे ) व्यवहार ३, (उज्जुसुए) ऋजुसूत्र ४, (सई) शब्द ५, ( समभिरूढ़े ) समभिरूढ ६, और ( एवंभूए) एवम्भूत । (से किं तं नयप्पमाणे १) नयप्रमाण किसे कहते हैं ? (नयप्पमाणे) जिन अनन्त धर्मात्मक वस्तुओं को एक ही अंशके द्वारा निर्णय किया जाय उसे नयप्रमाण जानना चाहिये, और वह (तिविहे पएणत्ते,) + तीन प्रकारसे प्रतिपादन किया गया है (तं जहा.) + 'यद्यपि नैगमसंग्रहादिभेदतो बहवो नयास्तथापि प्रस्थकादिदृष्टान्तत्रयेण सर्वेषामिह निरूपयितुमिष्टस्वात्त्रैविध्यमुच्यते ।' अर्थात् यद्यपि नैगमसंग्रहादि के भेद से नयों के भेद हैं तथापि प्रस्थकादि ष्टान्तों के द्वारा यहां पर उन सब के ही निरुपण करने की इच्छा से तीन प्रकार से ही प्रतिपादन किया गया है। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy