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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९६ www.kobatirth.org [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] अथवा आगम तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि-सूत्रा गम १, श्रर्थागम २, और तदुभयागम ३ । अथवा श्रात्मागम १, अनन्तरागम २, और परम्परागम ३। तीर्थंकरों से प्ररूपित श्रर्थ को आत्मागम जानना चाहिये । तथा गणधरों के रचे हुये सूत्र को श्रात्मागम और अर्थ को अनन्तरागम कहते हैं, श्रौर गणधरों के शिष्यों के सूत्र अनन्तरागम और अर्थ परम्परागम होता है तत्पश्चात् सूत्र और अर्थ दोनों ही परम्परागम होते हैं । क्योंकि - श्रात्मागम उसे कहते हैं जो स्वयमेव बोध हुश्रा हो, तथा जो बिना अन्तर गुरु से अध्ययन किया हो उसे अनन्तरागम जानना चाहिये । परपरागम उसे कहते हैं जो अनुक्रमपूर्वक वृद्ध लोग ज्ञान सीखते श्राये हों और आगे को भी परिपाट्यनुकूल सीखते जायं इस वर्णन से अपौरुषेय वाक्यों का भली भांति निषेध हो जाता है। क्योंकि वर्षों के तात्वादि श्रष्ट स्थान होते हैं और सूत्र भी वर्णमय होते हैं। तथा अशरीरी जीवों के वचनयोग नहीं होता, इस लिये अपौरुषेय वाक्य युक्तिसंगत नहीं होत | इसी को ज्ञान गुण प्रमाण कहते हैं । इसके बाद दर्शन गुण प्रमाण का स्वरूप जानना चाहियेदशक गुण पाया । से किं तं दंसणगुणष्पमाले ? चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - चक्खुदंससाणे अचवखुदंसण गुणप्पमाणे श्रहिंदंसणगुप्पमाणे केवल सगुणप्पमाणे । चक्खुदंसणं चक्खुदसणिस्स घडपडकडर होइएस सु अचक्खुदंसणं अचक्खुदंसणिस्स आयभावे श्रहिसणं ओहिदंसणिस्स सव्वरुविदव्वेसु न पुर्ण सव्वपज्जवेसु केवलदंसणं केवलदंसणिस्स सव्वदव्वेषु सव्वपज्जवेसु अ, से तं दंसणगुणप्पमाणे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदार्थ -- ( से किं तं सगुणमा ? ) दर्शन गुणप्रमाण किसे कहते हैं ? ( दस गुप्पमाणे ) #दर्शनावरणकर्म के क्षयोपशम से जो उत्पन्न हो, अथवा जो * दर्शनावरण कर्मक्षयोपशमादिजं सामान्यमात्रग्रहणं दर्शनमिति । श्रागम में भी कहा है For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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