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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [उत्तरार्धम् ] (से किं तं अवयवेणं ?) अवयवानुमान किसे कहते हैं ? (अवयवेणं) जिस अवयव से अवयवी का ज्ञान हो उसे अवयवानुमान कहते हैं, जैसे कि ( माहिसं सिंगेणं ) महिष का शृंग-सींग से (कुक्कुडं सिहाएणं) मुर्गे का शिखा से (हत्यि + विलाणेणं) हाथी का दान्तों से (वराहं दाढाए ) बराह का दाढ से ( मोरं पिच्छणं) मयूर का पिच्छी से (आसं खुरेणं ) अश्व का खुर से (बग्धं नहेणं) व्याघ्र का नखों से (चमरिं वालग्गेणं) चमरी गाय का बालात्रों से ( वाणरं लागलेण) कपि-बन्दर का पूंछ से (दुपयं मणुस्सादि) मनुष्यादि का द्विपद से ( चउपयं गवमादि ) गो आदि का चार पैरों से ( बहुपयं गोमिश्रादि कर्णशृगाली--कानखजूरादि का बहुत पैरों से ( सीह केसरेण ) सिंह का केशर से (वसहं कुक्कुणं) वृषभ का ककुभ स्कन्ध से ( महिलं वलयबाहाए) महिला स्त्री का भुजाओंकी चूड़ियों से । ( परियरबंधेण भई, जाणिज महिलिग्रं निवसणेगां । ) * परिकरवन्धन--शस्त्र के धारण करने से सुभट तथा वेष पहनने से स्त्री का (सि थेण दोणपागं कविं च एक्काए गाहाए ॥ ॥) चावलों का सिक्त--एक दाने से और कवि का एक गाथा से ॥१॥ ( से तं अवयवेणं । ) वही अवयव से । अनुमान है। - (से किं तं यासएणां ?) आश्रयानुमान किसे कहते हैं ?(ग्रासएए) आश्रय से जो पदार्थ का अनुमान होता है उसे आश्रयानमान कहते हैं । जैसे कि-(अलि धूमेणं ) अग्नि का धूएँ से, (सजिलं वलागेगां) जल का बलाकों से (बुष्टिं अन्भविकारेणां) वृष्टि का बादलों के विकार से (कुलपुत्तं सोलसमायारणां) कुलवान् पुत्र का शीलादि सदाचार से, ( इङ्गिताकारितैज्ञेयैः, क्रियानि पितेन च । नेत्रबक्रविकारैश्च, गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः॥१॥) शरीर की चेष्टाओं से, भाषण करने से, और नेत्र तथा मुख के विकार से अन्तर्गत मन जाना जाता है ॥१॥ (से तं प्रासए ।) यही आश्रयानुमान है, और (से तं सेसवं ।) यही शेषवत् अनुमान है। ये उदाहरण अवयवी के अनुपस्थिति में ही सिद्ध होते हैं । प्रत्यक्षा में सिद्ध नहीं हो सकते । आगप में भी कहा है “अयं च प्रयोगो वृत्तिवरण्डकाद्यन्तरिक्षवादप्रत्यचा एवावयविनि दृष्टव्यः । तत्मत्यचातायामध्यचात एव तत्सिद्ध रनुमानवैयर्थ्यप्रसङ्गादिति । - 'विषाण' शब्द के संस्कृत में तीन अर्थ होते हैं-१ सींग, २ कोल, और ३हाथी के दांत । यथा-"विषाणं तु श्रङ्ग कोलेभदन्तयोः"-अभिधाननाममाला । * विशिष्टनेपथ्यरचनालक्षणेन । + अर्थात अवयव के देखने से अवयवी का ज्ञान होना । अवयवानुमान है। भाश्रयतीति श्राश्रयः । हेतु का पर्याय ही आश्रय हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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