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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ [श्रीमक्नुमोगद्वारसूत्रम् ] सेकित सामनदि जहा एगो परितो तहा बहवे पुरिसा जहा बहवे पुरिसा वहा एगो परिसो, जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा जहा बहवे करिसावणा सहा एगो करिसावणो, सेत सामन्नदिटुं। ___ से कित' विसेसदिट्ट ? से जहाणामए केई पुरुसे कंचि पुरिसं बहूणं पुरिसाणं मज्झे पुवदिटुं पच्चभिजागोजा-अयं से पुरिसे, बहूणं करिसावणाणं माझे पुत्वदि, करिसावणं पच्चभिजाणिज्जा, अयं से करिसावणे । पदार्थ-(से किं तं अणुमाणे १ ) अनुमान प्रमाण किसे कहते हैं ? और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया मया है ? (अणुमाणे *) साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं, और वह ( तिविहे पएणन्ते, ) तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है (तं जहा.) जैसे कि-(पुधव) पूर्ववत् (सेस) शेषवत् और (दिट्टसाहम्मवं ।) दृष्ट साधम्यवत् । ( किं तं पुख्य ?) पूर्ववत् किसे कहते हैं ? (पुजन) पहिले देखे हुए लक्षणों से जो निश्चय किया जाय उसे पूर्ववत कहते हैं, जैसे कि-(मापा पुतं जहा नटुं, जुवाणं पुण गियं । ) जैसे कि-माता देशान्तर को गये हुए और वहां से युवा होकर वापिस पाये हुए पुत्र का (काई पञ्चभि नाणेजा, पुञ्चलिगेण केणई ॥१॥) किसी पूर्वाचित चिन्ह के द्वाप निश्चय करती है कि वह मेरा ही पुत्र है ॥ १॥ जैसे कि (खत्रोण वा) अपने देह से उत्पन्न हुये चत से अथवा (वएणेण वा) श्वानादि के किये हुये ब्रण से या लिंकणेण वा) स्वस्तिकादिकों के लाग्छनों-चिन्हों से या (मसेण) मसे से या (तिलएण वा) तिल से, (वे तं पुनवं ।) यह पूर्ववत् अनुमान है। ___* साधनाताध्यविज्ञानमनुमानम् । तथा च, अनु-लिङ्गग्रहणसम्बन्धस्मरणस्य पश्चात् मीयते-परिच्छिद्यते वस्त्वनेनेति अनुमानम् । विशिष्टं पूर्वोपलब्ध चिह्नमिह पूर्वमुच्यते, तदेव निमित्तरूपतया यस्यानुमानस्यास्ति तत्पूर्ववत् । तिल मसादि के देखने से माता अपने मन में निश्चय करती है कि यह मेग ही पुत्र है, क्यों कि इसके अमुक लक्षण अमुक समय में उत्पन्न हुए थे अथवा जन्म काल से ही थे। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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