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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri ! [उत्तरार्धम्] १६३ संमूर्छिम मनुष्य योजित करने से इतने ही होते हैं, अधिक नहीं । इस प्रकार मनुष्य के बद्धौदारिक शरीर होते हैं। मुक्तौदारिक शरोर तो श्रोधिकों के सहश जानना चाहिये । बद्ध वैक्रिय शरोर संख्येय हैं, क्योंकि ये सिर्फ वैक्रिगलब्धि वाले गर्भज मनुष्यों के ही होते हैं, तो भी पृच्छा के समय कितने ही संभव हैं । तथा प्रतिसमय एक २ अपहरण करने से संख्येय काल व्यतीत हो जाते हैं । यह प्ररूपणा केवल कल्पना मात्र ही है। तथा मुक्त वैकिय शरीर औधिक के समान जानना चाहिये। बद्र तथा मुक्त आहारक शरीर जैसे इन के औधिक होते हैं उसी प्रकार जानना चाहिये। तेजस और कार्मण शरीर इनके औदारिकों के सदृश होते हैं। इस प्रकार मनुष्यों के पांच शरीर होते हैं । इसके पश्चात् व्यन्तरों के शरीरों का वर्णन किया जाता है। व्यन्तरों के सब शरीर नारकियों के समान जानना चाहिये । लेकिन विशष इतना ही है कि * व्यन्तर नारकियों से असंख्येय गुण हैं। ध्यन्तर कितने अंश से सब प्रर को अपहरण कर सकते हैं ? सव्येय । योजन शत वर्गा का जो अंश है उससे अपहरण हो सकते हैं। मोतिषियों का सभी वर्णन सुगम ही है, लेकिन विशष इतना ही है कि इनकी विष्कान सूचि अन्तरों की: विष्कम्भसूचि से संख्येय गुणी अधिक होती है। * इनके असंख्य अंगियां की विनम्नचि का प्रमाण प्रज्ञापना सूत्र के महादण्डक पदानुसार त्वमेव जानना चाहिये । क्योंकि वे पति तिर्यञ्च पञ्चेंद्रियों की विकान सूचि की अपेक्षा असंख्येष गुणे हान होते हैं । अर्थात् प्रज्ञापना मूत्र महादण्डक पा में इनकी अपेक्षा व्यन्तरों का असंख्य गुण हीन पाठ प्रतिपादन किया गया है । यदि एक २ व्यस्त संख्यय योजन शत वर्ग रूप प्रतर के भाग को अपहरण करें तो सब प्रतर अाहरण हो सकते हैं । अावा यदि एक व्यन्तर उतने भाग मात्र में म्यापन किया भाय नो सभी प्रजा पूर्ण हो जाते है। प्रज्ञापना महादगइक में व्यन्त मे मंख्येय गुणं अधिक श्रोधिक ज्योतिषी प्रतिपादन किये गये हैं। और यहां पा भी प्रनहार क्षेत्र उनके क्षेत्र मे संख्येय गुणे हीन होते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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