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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् । से प्रतिपादन किये गये हैं। तथा-रूपी अजीव द्रव्य चार प्रकार का है, जैसे किस्कन्ध र स्कंध देश र स्कंध प्रदेश ३ परमाणु पुद्गल ४, इनमें रूपी अजीव द्रव्य भी संख्यात असंख्यात नहीं है, केवल अनंत द्रव्य हैं, कोकि पुद्गल अनंत पामणु हैं । द्वीप्रदेशी से लेकर अनंत प्रादेशिक द्रव्य भी अनंत हैं, इसीलिये रूपी अजीव द्रव्य भी अनन्त हैं । यह सभी विचार औदारिकादि शरीर धारी में सिद्ध होते हैं, अतः अब शरीरों का विषय प्रतिपादन किया जाता है पांच प्रकार के शरीर । कइविहा गं भंते ! सरीरा पगणता ? गोयमा ! पंच सरोरा पण्णता, तंजहा ओरालिए वेउव्विए आहारण तेअए कम्मए, णेरइआणं भंते ! कइ सरीरा पण्णता ? गोयमा ! तो सरीरा पगणता, जहाउव्विए तेत्रए कम्मए, असुरकुमाराणं भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तो सरीरा पगणात्ता, तंजहा-वेउव्विर तेथए कम्मए, एवं तिगिण २, एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणिअव्वा । पुढवीकाइयारणं भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तो सरीरा पगणता, तंजहा-ओरालिए तेथए कम्मए, एवं आउत उवणस्सइकाइयाणवि एए चेव तिषिण सरीरा भाणियव्या. वाउकाइयाणं भंत ! कह सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि सरीरा पण्णत्ता, तंजहा-ओरालिए वेउविए ते अए कम्मए । बेइंदिअत. इंदियचउरिदियाणं जहा पुढवीकाइयाणं, पंचिंदयतिरिक्खजोणियाणं जहा वाउकाइयाणं । मणुस्साणं भंत + ! कई सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तंजहा. * जाव गो० प्र०। +जाव गो० मा । For Private and Personal Use Only
SR No.020052
Book TitleAnuyogdwar Sutram Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherMurarilalji Charndasji Jain
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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