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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निमंतणा / / 1 ॥उवसंध्याय काल सामायारी भवे दराविहा // से तं पुब्बाणपुची। से किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुव्वी ! उपसंपया जाव इच्छागाहो से तं पच्छाणुपुवी / / से किं तं अणाणुपुवा ! अणाणुपुब्बी एयाए चेव एाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरुवृणो, से तं अणाणुपुव्वी // से तं सामायारी आणुपुवी // 73 // से किं तं भावाणुपुल्वी ? भावाणुपुल्वी तिविहा पण्णत्ता तंजहा-पुव्वाणुपुब्बी, पच्छाणुपुव्वी, अणाणुपुन्नी // से किं तं पुवाणुपुत्री कर उन मुनि का कार्य करे, 8 अन्न पानी आदि का समविभाग करना. 9 उन से पूज्य मुनिवरों से आमंत्रगा करना और 10 श्रुताध्ययन के वास्तेि किसी अन्य मुनि के पास उपस्थित होना और उसे कहना कि मैं आप का हूं इत्यादि शब्दों को उपसंपदा समाचारी कहते हैं. यह दश प्रकार की ममामचारी हुई. यह पूर्वानुपूर्वी का कथन हुवा. बब अहो भगवन् ! पच्छानपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपसंपदा ने इच्छा पर्यंत गणना करना उसे पच्छानपूर्वी रहते हैं. अहो भगवन् ! अनानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! एक से दश पर्यंत अन्योन्या पास करके जो संख्या आवे उस में से पहिले और पीछे का अंक छांडकर शेव सब अंक को आआती कहते हैं यह समाचारी आनुपूर्वी का। कथन हुवा / / 93 // अहो भगवन् ! भावानुपूर्वी किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भावानुपूर्वी के तीन भेद कहे हैं तद्यथा-१ पूर्वानुपूर्वी, 2 पच्छानुपूर्वी व 3 अनानुपूर्वी. अब इन में पूर्वानुपूर्वी का प्रश्न अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनिश्री प्रमोडक ऋषिजी प्रकाशक राजाबहादुर साला सुखदवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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