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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र 4.38282 काग चम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्य एकत्रिंशचम साखजाई अजाइ / अणता३ नाम ववहाराण आणुपुव्या दवाई लामरस किं सरिजन मान हाजा, असंखि.जइ भागे होजा, संजेशु भागेसु वा होजा, असंखेजसु जागेसु वा होज्जा, सबलोए बा होज्जा ? ए दब्बं पडुज संजइ भागे वा होजा, असंखेजइ भागेका होला, संखेनेतु वा भागेसु होजा, असंखेजेसु वा भागेसु होजा, देसूणे वा लोए होजा, णाणा दवाई पडुच्च नियमा सबलोए होजा, एवं दोन्निधि / एवं फुसणावि / नेगम बबहाराणं आणुपुरी दब्याई काल ओ केवच्चिरं होति ? पुगं दब्धं पडुच्च जहण्णेणं तिष्णि समया, उकोसेणं व्यवहार नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात, असंख्यात या अनंत है ? अहो शिष्य ! तीनों संख्यात व अनंत नहीं है परंतु असंख्यात है. नैगम व्यवहार नय के मत से आनपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में है, अगर यात भाग में है, संख्यातधे भाग में है, असंख्यातवे भाग में है. या सबलोक में ? अहो शिष्य! एकद्रव्य आओ संख्यात भाग में है, असंख्यात भाग में है संख्यातो भाग पसं ख्यातये भाग में है, या कुछ कम सब लोक में है. बहुत द्रव्य आश्री नियमा सघ लोक में ही 7 अनानुपूर्वी व अवक्तव्य द्रव्य का कहना. और ऐसे ही स्पर्शना का भी कहना. नैगम व्यवहार नय से समानुपूर्वी द्रव्य काल से कितना काल तक रहे? अहो शिष्य! एक द्रव्य आश्री जघन्य तीन समय / का कथन 48:032 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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