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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *880 एकार्यशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ 28 भंगसमुक्कित्तणया / / एयाएणं णेगम ववहाराणं भंगसमुक्तित्तणयाए किं पयोयणं ? णेगम ववहाराणं भंगोवदसणया कजइ // 8 // से किं तं गम बवहाराणं भंगोवदसणया ? णेगम ववहाराणं भंगोवदंसणया तिसमय टिईए आणुयुबी, एगसमय ठिईए अणाणुपुब्बी,दुसमय लिईए अवत्सव्वए, तिसमय दिईया आणुपुवीओ, एगसमय ट्ठिईया अणाणुपुबीओ, दुसमय द्विईया अवत्तव्वगाई. अहवा तिसमय ट्ठिईएय एगसमय टिइए आणुपुब्बी. अणाणुपुवीय, एवं तहा चेव दव्वाणुगमेणं छब्बीस भांगे कहना. यावत् यह नैगम व्यवहार नय से भंग समुत्कीर्तनता का कथन हुवा. इस मंग समुत्कीर्तन का क्या प्रयोजन हैं ? अहो शिष्य ! इस से भंगोपदर्शनता होती है // 8 // अहो भग वन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से भंगोपदर्शनता किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! तीन समय की स्थितिवाले आनुपुर्वी, एक समय की स्थितिवाले अनानुपूर्वी व दो समय की स्थितिवाले अवक्तव्य, बहुत तीन समय की स्थितिवाले बहुत आनुपूर्वी, बहुत एक समय की स्थितियाले बहुत अनानुपूर्वी व बहुत दो * समय की स्थितिवाले बहुत आक्ता अथवा तीन समय की स्थिनिवाळे व एक समय की स्थितिधाले आनी अनानी. यों से व्यापूर्वी के छवीस भांगे कहे वैसे ही कालानी के छब्बीस भाम 4938+ कालानुपूर्वी का कथन 48+ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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