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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र | 3800 एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 33 अदृश्य परूवणया तिपरसोगाढे आणपुच्ची, जाव दसपएसोगाढे आणुपुब्बी जाव संखिज पएसोगाढे आणधी, असंडिज परसोगाढे आणुपुब्बी, एग पएसोगाढे अणाणुपुब्बी, दुपएसोगडे अबलम्बर,लिपएसोगाढा आए.प.बीओ जाव दस पएसोगाढा आणुपुब्बीयो संखेज मातोगाडे आणु मुवीओ जाव अनलिज परसोगाढा आणपुब्धीओ, एग पएसोगाढा अणाणुपुवीओ, दुमएलोमाढा अबत्तव्ययाई, से तं गम यहाराणं अट्ठपय परूवणया||एयाएणं गम ववहाराणं अदृश्य परूःणय ए किं पयःयणं?एयाए णेगम ववहाराण अपय पुरूवणयार गम ववहाराणं भंग समकित्तणया कजइ // 59 // से किं तं गम बहाराणं भंग समुक्त्तिण्या ? गम ववहाराणं कहते हैं ? नैगम व्यवहार यी अर्थाद प्रपना से तीन प्रदेशावगाह. यावत् दश देशावमाह यावत् संख्यात, असंख्यात प्रदेशावह को अनुपूरी करते हैं, एक प्रदेशावगाही को अनानपूर्ण कहत और द्विपदेशावगाही को अवक्तव्य करते हैं. यह म व्यवहार गय से अपद प्ररूपना हुई. अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार नय से अपदमरूपना करने का क्या भोजन है ? अहो शिष्य ! नैगम व्यवहार नय की अर्थपद प्ररूपना से भी समुत्सीनता किया जाता है // 59 // अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से भंग समुत्कीर्तन किसे कहते हैं ? अहो रिप्य ! नमम व्यवहार नय की भंग 4848ॐ क्षेत्राणीक कथन38-488 अर्थ / For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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