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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र ! पुण पट्टवणं पडुच्च आवस्तगरमा अणुओगो // 5 // जइ आवस्सगस्स अणुओगो,आ. वस्सयणं किं अंग अंगाई,सुयखंधो,सुयखंधा, अज्झयणं,अज्झयणाई,उद्देसो,रदेसा?आवस्सयस्सणं-नो अंग,नो अंगाई,सुयखधो,नो सुयखंधा,नो अज्झयणं,अज्झयणाई,नो उद्देसो, नो उद्देसा, ! तम्हा आवस्मयं निक्खिविरसामि, सुअं निक्खिावैस्सामि, खंधं निक्खि. विस्सामि,अज्भयणं निविखविस्मामि, जत्थय 2 जं जाणेजा निक्खेवं निक्खेवे निरवसेसं / अE का वर्णन करते हैं // 5 // प्रश्न-अहो भगवन् ! यदि वर्तमान में आवश्यक की व्याख्या की जाती है। है तो क्या आवश्यक एक अंग है कि आवश्यक बहुत अंग है. तथा एक श्रत स्कंध है या बहुत श्रुत स्कंध है एक अध्ययन है या बहुत अध्ययन है, एक उद्देशा है या बहुत उद्देशा है ? उत्तर-अहो शिष्य ! / आवश्यक का एक श्रुत स्कंध बहत श्रुत स्कंध नहीं है, अर्थात् आवश्यक अंग नहीं है परंतु श्रत स्कंध है आवश्यक का एक अध्ययन नहीं है परंतु बहुत मे अध्ययन हैं अर्थात् छ अध्ययन हैं. आवश्यक का # एक उद्देशी नई है और बहत उद्देश भी नहीं है इस लिये इप का स्पष्ट स्वरूप समजाने के लिय में आवश्यक 2 श्रुत.. स्कंध. और 4 अध्ययन. इन चारों के पृथक 2 चार निक्षेप करूणा, कोकि जन पदार्थों के जितने निक्षेप जाने उन के उतने निक्षेप निर्विशेषता से करे और जो जिन पदार्थों को है For Private and Personal Use Only 47 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजीत प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेमहायजी ज्वालाप्रसादजी
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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