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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्रिंशचम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुथ मूल 4882 अणाणुपुबी // 55 // अहवा उवणिहिया दव्वाणुपुब्बी तिथिहा पण्णत्ता तंजहा. पुन्वाणुपुवी, पच्छाणुपुब्बी, अणाणगुब्बी, से तिं पुराणुगुनी ? पुवाणुपुब्बी परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाय दसपएसिए संखिजाएतिए असखिजपए. सिए अणंतपएसिए से तं पुवाणगुच्ची // से किं तं पच्छाणुपुब्बी ? पच्छाणुब्बी अणंत पएसिए, असंखेजपएसिए संखिजाए.सए जाव दसएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले. से तं पच्छाणुपुत्वाासे किं तं अणाणुपुब्बी ? आणाणुपुवी एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अगंगच्छगयाए सेढीए अन्नमण्णब्भासो दुरूंबूणो हुए और 718 भांगे अनानुपूर्त के हुए. // 55 // अथवा उपनिधिका के तीन भेट पूर्वानुपूर्वी, पच्छानुपूर्वी व अनानुपूर्वी उस में पूर्वानुपूर्वी से परमाणु पुदल, द्वि प्रदेशिक स्कंध, तीन प्रदेशिक स्कंध, पावत् दश प्रदेशिक स्कंध, संख्यात प्रदेशिक स्कंध, असंख्यात प्रदेशिक स्कंध व अनंत प्रदशिक स्कंध, पच्छानुपूर्वी सो अनंत प्रदेशिक स्कंध, अपंख्यात प्रदेशिक स्कंध, संख्यात मदेशिक स्कंध. दश प्रदेशिक स्कंध यावत् तीन प्रदेशिक संघ, द्विपदेशिक स्कंध व परमाणु युदल. अहो भगवन् ! अनानुपूर्वी किसे कहते हैं / अहो / शिष्य ! एक से अनंत पर्यंत उत्तरोतर एक 5 अंक की वृद्धि करके उसे गुना करखे जो अंक भावे उसे में दो कप पर्यंत अनानुपूर्वी मानना. इस की विधि पूर्वोक्त जैसे जानमा. वह अनानुपूर्षी हुई. यह Paramwamanna 10 उपनिर्षि का कथन S 488 aet For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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