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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Hd 1 अटुपयपरू वणया, 2 भंगुसमुक्त्तिणया, 3 भंगोवदंसणया 4 समोयरे 5 अणुगमे // 39 ॥से किं तं संगहस्स अट्ठपय परूवणया ? संगहस्स अट्ठपय परुवणया तिपएसिए आणुपदवीए चउप्पएसिए आणुपुव्वी जाय दस पएसिए आणुपुब्बी संखिज पएसिए आणुपुवी असंखिज्ज पएसिए, आणुपुब्बी अणंतपएसिए, आणुपन्बी परमाणु पोग्गले अणाणुपुवी दुपएसिए अवत्तव्वए, से तं संगहस्स अट्रपय परूवणया // 40 // एयाएणं संगहस्स अट्रपय परूवणयाए किं पओयणं ? एयाएणं संगहस्स अपय परूवणयाए संगहस्स भंग समुक्कितणया कजइ // 41 // से किं तं संगहस्स भंग समुकि एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 80%88 अनुगम विषय अर्थ पूर्वी के पांच भेद कहे हैं. तद्यथा-१ अर्थपद प्ररूपना, 2 भंग समुत्कीर्तन, 3 भंगोपदर्शनता, 5 समवतार और 5 अनुगम. // 31 // अहो भगवन् ! संग्रह नय के मत से अर्थपद प्ररूपना किसे Eकहते हैं ? अहो शिष्य ! संग्रह नय के मत से अर्थपद प्ररूपना तीन प्रदेशिक आनुपूर्वी, चार प्रदेशिक आनुपूर्वी. यावत् दश प्रदेशिक आनुपूर्वी, संख्यात प्रदेशिक आनपूर्वी. असंख्यात प्रदेशिक आनुपूर्वी व अनंत प्रदेशिक आनपी. परमाणु पद्गल अनानुपूर्वी और द्विपदेशिक स्कंध अवक्तव्य. यह संग्रह नय की अर्थपद प्ररूपना हुई. // 40 // अहो भगवन् ! संग्रह नय की अर्थपद प्ररूपना करने का क्या प्रयोजन है? अहो शिष्य ! संग्रह नय की अर्थपद प्ररूपना से संग्रह नय का भंग ममुत्कीर्तन ! !किया जाता है. // 41 // अहो भगवन् ! संग्रह नय से भंग समुत्कीर्तन कि कहते हैं ? अहोई 94280 8 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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