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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ANS अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - दव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोप होजा // नेगम ववहाराणं अणाणुपुन्वी दवाई किं लोयस्स संखिजइ भागे होजा जाव सव्वलोए या होजा ? ९गं दव्वं पडुच्च नो संखेजइ भागे होजा,असंखेजति भागे होजा. नासखेजेसु भागेसु होजा,नो असंखजेसु भागेसु होजा,नो तव्वलोए होजा णाणा व्याई पडुच्च नियमा सव्वलोए होजा, एवं अवतव्वग दव्याई भाणियव्वाई // 32 // नेगम क्वहाराणं आणुपुन्वी दवाई लोगस्स किं संखेनइ भागं फुसंति,असंखजइ भागं फुसंति,संखेजेसु भागे फुसंति, असंखेजेसु भागे फुसंति, सव्वलोगं फसंति ? एगं दव्वं पडच्च लोगस्स संखेजा पर्यंत यह हैं. अहो भगवन् ! नैगम व्यवहार नय आश्रीय अमानुपूर्वी ट्रव्य क्या लोक के संख्यात माग में हैं, असंख्यात भाग में हैं, मख्यातचे भाग में हैं या असंख्यातवे भाग में है, या सब लोक में हैं ? अहो शिष्य ! एक द्रव्य आश्रीय लोक के असंख्यात भाग में ही होता है और बहुत द्रव्य आश्रीय निय से सब लोक में होता है. ऐसे ही अवक्तव्य का कहना // 32 // चौथा स्पर्शना द्वार कहते हैंभगवन् ! नैगम व्यवहार नय के मत से आनपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में सहर्श करते हैं.. असंख्यात भाग में स्पर्श करते हैं. संख्यालये भाग में स्पर्श करते हैं, असंख्यातवे भाग में स्पर्श करते हैं / या सब लोक में स्पर्श करते हैं ! अहो शिष्य ! भानुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यात भाग में यावत् सब प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादजी" For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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