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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir + एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल नो अणाणुपुवी दव्वेहि समोयरंति, नो अवत्तव्वय दव्वेहि समोयरंति. ॥नेगमववहाराणं अणाणुपुब्बी दबाई कहिं समोयरंति किं आणुपुवी दव्वहिं समोयरंति, अणाणुपुब्बी दव्धहि समोयरंति. अवचव्यय दव्वेहिं समोयरंति?नो आणुपुवी दब्बेहि समोयरति. अणाणुपुबीदव्येहिं समोयरंति. नो अवत्त व दव्वोहिं समोयरंति नेगमववहाराणं अवसव्व दव्वाइंकहिं समोयरति-किं आणुपुयी व्यहि समोयरंति,अणाणुपुवी दव्वेहि समोयरति, अवत्तव्व दव्वेहिं समोयरंति ? नो आणुपुब्बी दब्वेहिं समोयरंति, नो अणाणुपुथ्वी दव्वेहि समोयरंति, अवत्तब्धय दब्वेहि समोयरंति // सेतं समोयारे // 28 // से व्यवहार नयके मत से समवतार कैसे होता है ? क्या आनपूर्वी द्रव्य का समवतार होता है. अनानुपूर्वी द्रव्य का समवतार होता है या अवक्तव्य द्रव्य का समवतार होता है ? अहो शिष्य ! गम व्यवहार नय के मत से आनुपूर्वी द्रव्य में समवतार होता हैं परंतु अनानुपूर्वी व अवक्तव्य द्रव्य में समवतार नहीं है होता है. ऐसे ही अनानुपूर्वी द्रव्य का अनानपूर्वो द्रव्य में समवतार होता है परंतु आनुपूर्वी व अवक्तव्य व द्रव्य में समवतार नहीं होता है और अवक्तव्य द्रव्य का अवक्तव्य द्रव्य में समवतार होता है। परंतु अनापूर्वी व आननुपूर्वी द्रव्य में समवतार नहीं होता है // 28 // बहो भगवन् ! अनुगम किसे *88% समवतार वर्णन 43. 498 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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