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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - भाव ज्झवणा दुविहा पण्णत्ता तंजहा-पसत्थाय, अपसत्थाय // से किं तं पसत्था ? पसत्था चउविवहा पण्णत्ता तंजहा-कोह ज्झवणा, माणज्झवणा, मायाज्झवणा, लोभज्झवणा, से तं पसत्था // से किं तं अपसत्था ? अपसत्था निविहा पणाता तंजहा-णाणज्झवणा, दसणज्झवणा, चरित्तज्झवणा, से तं अपसत्था // से तं नो आगओ भाव ज्झवणा // से तं भाव ज्झवणा // से तं उहनिप्फन्ने // 15 // से किं तं नाम निप्फन्ने निक्खेवे ? नाम निष्फन्ने निक्खेवे सामाइए से समासओ चउंविहे पण्णत्ते तंजहा-नाम सामाइए, ठवणा सामाइए , और 4 लोभ का क्षय करे. यह प्रशस्त झवणा हुई. अहो भगवन् ! अपशस्त झवणा किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अप्रशस्त झवणा तीन प्रकार की कही, तद्यथा-१ ज्ञान का नाश करे, 2 सम्यक्त्व का नाश करे, और 3 चारित्र का नाश करे. यह अप्रशस्त झवणा हुवा. यह नो भागम से भाव झवणा हुवा, यह भाव झवणा भी हुवा, और यह दूसरा अनुद्धार का औघ निष्पन्न नामक पठम भेद हवा // 15 // अहो भगवन् ! नाम निष्पन्न निक्षेप किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! नाय निष्पन्न में निक्षेप से यहां अन्यनय का नाम ग्रहण किया इस लिये सामायिक अध्ययन. इस का संक्षेप में चार प्रकार से कहा है. तद्यथा-१ नाम सामायिक, 2 स्थापना सामायिक, 3 द्रव्य सामायिक और *प्रकाश राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसाद अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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