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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठवणाए, दव्याए, भावाए // नामठवणाओ पुवभणियाओ से कि तं दव्याए? दवाए दुबिहे पण्णते तंजहा-आगमओ, नो आगमओ // से किं तं आगमओ?आगमओ! जस्मणं अएत्तिपयंसिखित्तं हितं जितं मितं परिजित जाव कम्हा ? अणुउवओगे दञ्चामातकटु // नेगमस्सणं जावइया अणुव उत्ता आगमतो तावइया ते दवाया, जाव सेतं आगमतोदव्वाए // से किं तं नो आगमतो दवाए ! नो अगामतो दवाए तिविहे पण्णत्ते तंजहा-जाणग सरीर दव्वाए, भविय सरीर दवाए, अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी लाभ) किस को कहना? अहो शिष्य ! आय चार प्रकार कहे हैं तद्यथा-१ नाम आय, 2 स्था. पना आय, द्रव्य आय, और 4 भाव आय, इस में नाम स्थापना का तो पूर्वोक्त प्रकार कहना. अहो न भगवन् ! द्रव्य आए किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! द्रव्य आय दो प्रकार कहे है तद्यथा-' आगम से और 2 नो आगम से. अहो भगवन् ! आगम से द्रव्य आय किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! आगम से द्रव्य आय सो जिसने आय ऐसा पद पडा हृदय में स्थित किया यावत् किस लिये द्रव्य कहा? अहो शिष्य ! अनुपयोग के कारण से, नैगम नय की अपेक्षा यावत् जितने उपयोग रहित आग पढे है उतने ही द्रव्य आय कहना. इत्यादि सर्व आवश्यक मुजब कहना, यह आगन से द्रव्य आवश्यक हुवा, 4 अहो भगवन ! नो आगम से द्रव्य आवश्यक किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! नो आगम से द्रव्य *पाकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी-ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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