SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं आगमतोय भावज्झयणे ? आगमतोय भावज्झयणे जाणए उव उत्त से तं आगमतोय भावज्झयणे // 11 // से किं त णो आगमतीय भावज्झपणे? नो आगमतो भावज्झयणे अज्दयरमाणयाणं कम्माणं अवचयो उपचियाणं अणुवचउयनवाणं तम्हा अज्झयणमिच्छंति, से तं नो आगमओ भावज्झवणे, से तं अज्झयणे // 12 // से किं तं अज्झीणे ? अज्झीणे चउविहे पण्णत्ते तंजहा-नामझिणे, ठवणाझिणे, दव्वझिणे, भावज्झिणे // नामठवणाओ पुव्ववण्णियाओ // से किं तं / कहते हैं ? अहो शिष्य ! अध्ययन का जान और उपयोग सहित पढना है वह आगम से भाव अध्ययन जानना. // 11 // अहो भगवन् ! नो आगम से भाव अध्ययन किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भो आगम से भाव अध्ययन सो अध्यात्मचित्त शुभ उपयोग स्थिर कर आठों कर्मों का अपत्य पुष्ट करना उपत्यय विशेष पुष्ट करना उस का क्षय करना और नये कर्मों का बन्ध नहीं करन ऐसा |जिस से हो इसलिये उसे अध्ययन कहना. यह गणधरादि के अवश्य पढ़ने योग्य हैं. यह आगम से भाव अध्यया हुवा. और यह अध्ययन का कथन हुवा // 12 // अहो भगवन् ! अक्षीण किसे कहते ल हैं ? महो शिष्य ! अक्षोण चार प्रकार के कहे हैं तद्यथा-१ नाम अक्षीण, 2 स्थापना अक्षीण. 151 द्रब्य अक्षीण, और 4 भाव अक्षीण, इस में नाम स्थापना गा तो पूर्ववत् जानना. अहो भगवन् ! का अनुवादक बालब्रह्मचारा मुनि श्री अमोलक ऋषिनी भकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी* For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy