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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिभी दबझयणे भवियसरीरदबझयणे जाणगसरीर भवियसरीर बतिरित्ते दवझयणे // 6 // से कि तं जाणगसरीर दव्वज्झयणे? जणगसरीर दवज्झयणे-पदत्याहिगारा जाणयरस जं सरीरं ववगतचुतचवित चत्तदेहं जीवविपजढं; जाव अहोणं इमेणं सरीर समुस्सएणं जिणदिटेणं भावेणं अज्झयणेत्तिपदं आघवित्तं जाव उवदंसितं जहा को दिटुंतो ? अयं घयकुंभे आसी, अयंमहुकुंभे आसी, से तं जाणगसरीर दबझयणे // 7 // से किं तं भवियसरीर दव्वज्झयणे ? भवियसरीर दबज्झयणे जे जीवे जोणिजमण निक्खंते इमेणंचव आदत्तएणं सरीरं समुस्सएणं जिणदिट्टेणं मागम से द्रव्य अध्ययन तीन प्रकार से कहे हैं, तद्यथा- ज्ञेय शरीर द्रव्य अध्ययन, 2 भविय शरीर द्रव्य अध्ययन, 3 क्षेय भविय व्यतिरिक्त शरीर द्रव्य अध्ययन // 6 // अहो भगवन् ! नेय शरीर द्रव्य अध्ययम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अध्ययन का पद अर्थ अधिकार जिस का जान था उस काम शरीर पडा हैं और उस में से जीव चवगया वह शरीर जीव रहित हुवा. उसे देख कर कोई कहे कि हो यह इस शरीर से जिनेन्द्र प्राणित भाव का अध्ययन ऐसा पद कहा था यावत् उपदेश था. पथा दृष्टांत यह पूत का घडा था. यह मधु का घडा था. इसे क्षेय शरीर द्रव्य अध्ययन कहना. // 7 // 'अहो भगवन् ! भव्य शरीर द्रा अध्ययन किसे कहना? अहो शिष्य ! जो जीव का योनी से है *प्रकाशक-गजाबाहादुर लामा मुखदेषसहावजी ज्वालाप्रसादजी: अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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