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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक शाषजी अपमन्नभासो रूवो उक्कोसयं असंखेजा असंखेज्जयं होइ, अहवा जहन्नयं परित गंतयं स्वर्ण उक्कोस असंखिजा असंखेजयं होइ, जहन्नयं परित्ताणतयं कित्तियं हेइ, जहन्नयं असंखेजा असंखेजयं मेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नभामो पडिपुन्नो जहन्यं परित्ताणतयं होइ, अहवा उक्कोसए असंखेजा असंखेजए रूवं पखित्तं जहन्नयं परिचाणंतयं होइ, तेणं परं अजहन्नमणुकोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं परित्ताणतयं ण पावति, उक्कोसयं परित्ताणतयं कित्तियं होइ, जहन्नयं परित्ताणं तयं मेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नम्भासो रूवुणो, उक्कोसं परित्ताणतयं होड़ अहा जहन्नयंजुत्ताणतयं रूवूणं उन्कोसयं परित्ताणतय होइ, // जहन्मयं जुत्ता गुनाकार करके एक कम करेवा कर अपंख्यात असंख्या अथक जयन्य पारिता शत्रका कभी करे वह उत्कृष्ट अख्यात रहावे. अहो मगर! जान्य बाता अनंत कितन होते ? जघन्य असंख्याल भगख्यात की राशी को पार गनाकार करनपूर्ण जितना रूप हाने से जपन्ध परिता अनंन होये. अथवा उत्कृष्ट प्रसंख्यामा ध्यान में एक रूप पक्षप कर वे जघन्य पारता अनंत होवे.. उस के उ.पर अजघन्योत्कृष्ट स्थान यावन् जहां तक तीसरा उत्कृष्ट परिता अनंन म होवे तहां तक दूसरा अनंता उत्कृष्ट परिता अनंत कितने होते हैं ? अहो शिष्य जघन्य परिता अनंत की राशी को. शक राजाबहादुर लाला मदन महाराजा ज्वालामसादजी For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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