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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 488+4 + RO अर्थ नो खंधे, एवं वयंत समभिरूढं, संपति एवंभूत भणनि जं जं भणसि, तं तं सव्वं कसिणं पडिपुन्नं निरवसेसं एगं गहणं गहितं देसेविसे अवत्थू पएसेविसेय वत्थू. से तं पएसदिटुंतेणं // से तं नयप्पमाणे // 92 // से किं तं संखप्पमाणे ? संखपमाणे अद्रविहे पण्णत्ता तंजहा-नामसंखा, ठवसंखा, दव्वसंखा उवमसंखा, परिणामसंखा, जाणणसंस्वा, गणणासंखा, भावसंखा, // णाम ठवणाउ पुव्व. भणियाओ, जावसेतं भवियसरीर दव्वसंखा // 93 // से किं तं जाणयसरीर 18 धम्मपएसो, यो छ ही अत्र षष्ठी तत्पुरुष संग्रह पंचण्डं पएसे-धम्मपएसे एवं पंच, सत्त पष्ठी तत्पुरुष, बबहार पंचविहो धम्मपएसो एवं 5 प्रथम ऋज़ सूत्र भायव्यो पएसो सिय धम्मपरसो एवं 5 पंच कदा चित् संदेह, शब्द नय धम्मपएसे से पएस धम्मे. सयांभरूढ धम्मेय से एएसेय पएस धम्प्रे, एवंभूत धम्मत्यीशया अखंड नाम. यह सातों नय का संक्षेप में परमार्थ जानना. इति प्रदेश दृशन्त. और यह तीनों दृष्टान्त से सातों नय का प्रयाण हुवा // 12 // अहो भगवन् ! संख्या प्रमाण किसे कहते हैं ? E/अहो शिष्य !' संख्या प्रमाण के आठ भेद कहे हैं. तद्यथा-१ नाम संख्या, 2 स्थापन संन्य 3 द्रव्य संख्या, 4 औषमा संरु I, 5 प्रमाण सख्या, 6 जानने की संख्या 7 गिनने की और र 8 भाव संख्या, इस में से नाम और स्थापना तो प्रथम आवश्यक में कही तैसे है। कहना : मात्र मानके भविय परीर और भविय शरीर की उत्तर पच्छा तहां तक कहना // 13 // अहो भगवन् माण विषय 48. एत्रिशतम अनुयोमा For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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