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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र श्री अमोलक ऋार्षजी + जहावायसो न तहा पायसो, जहापायसो नतहा वायसो से तं पायवेहम्मो॥८१॥से किंतं सव्व वेहम्मे ? सव्व वेहम्मेउबमे नत्थी तहावि तेणे तस्स उवमं करती जहाणीएणणीय सरिसंकथं दासण दास सरिसंकयं,कागेण काग सरिसं कयं, साणेणसाण सरिसंकयं, पाणेग पाण सरिसंकयं, से तं सव्व वेहम्मे // से तं वेहम्मोवणीते // से तं उवमे // 82 // से किं तं आगमे ? आगमे-दुविहे पण्णत्ते तंजहा लोइएय, लोगुत्तरिएय // 83 // से किं तं लोईए ? लोईए जणं इमं अण्णाणिएहिं निर्जीव परिभ्रमण करता है. ऐसे ही जैसे पायस तैसा वायस नहीं. यह प्रायः वैधर्मोपनित , हुवा. // 81 // अहो भगवन् ! सर्व वै धर्मोपनितपना किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! सर्व विपरीत औषमा नहीं है तथापि उस कर उस की औपमा कहते हैं. जैसे नीच मनुष्य को नीच जैसा कहा. दास को दास जैसा कहा. काग को काग जैसा, कुत्ते को कुत्ते जैसा. जीव को जीव जैसा कहा यह सर्व वैधर्म उपनित और औपमा प्रमाण हुवा // 82 // अहो भगवन् ! आगम प्रमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य जो गुरुओं की परम्परा से चला आता हुवा तथा जीवादि पदार्थों का गम्य करानेवाला हो उसे आगम प्रमाण कहना. जिस के दो प्रकार कहे हैं. तद्यथा लोकिक और 2 लोकोचर // 83 // अहो भगवन ! लोकिक आगम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य प्रकाशक-राजाबहादुर राला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी * अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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