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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 289 एकात्रंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुथ मूल 48800 अथे पंचविहे पण्णत्ते तंजहा-सोइंदिय पचक्खे चक्खू इंदिय पञ्चक्खे, घाणिदिय पञ्चक्ख जिभिदिय पञ्चक्खे, फार्सिदिय पञ्चक्खे, से तं इंदिय पञ्चक्खे // से कि तं नो इंदिय पञ्चक्खे ? नो इंदिय पञ्चक्खेतिविहे पण्णत्ते तंजहा-ओहिणाण पच्चक्खे मणपज्जव णाण पच्चक्खे, केवलणाण पञ्चक्खे, से तं नो इंदिय पञ्चक्खे सेत पञ्चक्खे॥६६॥से कि तं अणुमाणे ?अणुमाणे तिविहे पण्णते तंजहा-पुत्ववं,सेसवं,दिद्विसाहम्मवं // 67 // से किं तं पुव्ववं ? पुव्ववं!माता पुत्तं जहा नवए जुवाणं पुणरागतं काइ पञ्चभिजाणेज्जा प्रत्यक्ष प्रमान के पांच प्रकार कहे हैं. तद्यथा-१ श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष, 2 चक्षुरेन्द्रिय प्रत्यक्ष, 3 घाणेन्द्रिय 2 प्रत्यक्ष, 4 रसेन्द्रिय प्रत्यक्ष और 5 स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष, यह इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमान हुवा. अहो शिष्य नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमान किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! मो इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमाण के तीन प्रकार कहे हैं. तद्यथा-१ अवधिज्ञान प्रत्यक्ष, 2 मनः पर्यन ज्ञान प्रत्यक्ष, और 3 केवल ज्ञान प्रत्यक्ष. यह नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमान हुवा और यह प्रत्यक्ष प्रमान भी हुवा // 66 // अहो भगवन् ! अनुमान प्रमान किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अनुमान प्रमान के तीन प्रकार कहे हैं तद्यथा-१ पूर्ववत्, 2 शेषवत् और 3 दृष्टिसाधर्मिकवत् // 67 // अहो भगवन् ! पूर्ववत् किसे कहते हैं ? अहो शिष्य : किसी माता का पुत्र बचपने में परदेश गया और युवान होकर पीला आया तो फिर माता अपने पुत्र को किस प्रकारका 48948 प्रमाण का विषय 48488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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