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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 281 सूत्र-चतुर्थ मूल. 1 पढम वग्गमूल तइयवग्गमूल पडुपन्ने, मुक्केलया जहा ओहिया ओरालिया // मणुस्साणं भंत ! केवइया वेउव्विय सरीरा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बंधेलय मुझेलाय, तत्थणं जे ते बंधेलया तेणं संखिज्जा समए 2 अबहीरमाणा 2 संखेजेणं. काळेणं अवहीरति नो चेवणं अबहिला सिआ.मुकेलयाय जहा ओहिया // मणुरसाण भंते! केवतिया आहारय सरीरा पण्णत्ता गोयमा दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बरेलयाय मुक्कल पाय तत्थेणं जे ते बद्धे लया तेणं सिय अस्थि सिय णत्थि,जइ अस्थि जहन्नेणं एकोवा अंक अपहरावे. अर्थात श्रेणि के अंगुल प्रमाण क्षेत्र में जो प्रदेश राशी होवे उसे प्रथम वर्ग मूल तीसरा वर्ग मूल के प्रदेश राशी के साथ गने तब जो प्रदेश राशी होवे उतने प्रमाण का क्षेत्र खंड जो एकेक में मनष्य का शरीर अनुक्रम से अपहरते असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कर सब श्रेणि अपहरावे. तब म मर्छम गर्भे पर के शरीर होवे. और मूकेलक मनुष्य के शरीर जैना औषेक में औदारिक शरीर का कहा तैसा कहना. अहो भगवन् ! मनुष्य के चक्रेय शरीर किस प्रकार का कहा है ? अहो गौतम ! दो प्रकार का कहा है तद्यथा-१ बंधेलक और 2 मुकेलक. इस में जो बंधेलक वैक्रेय शरीर है वे संख्यात हैं ( क्यों कि यह लब्धि प्रत्यय गर्भज मनुष्य के ही होता है ) वह एकेक समय में हरन / करते संख्यात काल में खुटजावे. परंतु किसीने अपहरन किया नहीं और न कोइ अपहरन करेगा। * और मूकेलक का जैसा औधिक का कहा तैसा कहना. अहो भगवन् ! मनुष्य के आहारक शरीरा For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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