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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir in तेयगकम्म सरीरा जहा ओरालिया॥ 59 // मणुस्साणं भंते / केवतिया ओरालिय सरीरा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता तंजहा-बंडेलगाय मुक्केलगाय, तत्थणं जे ते बंडेलया तेणं सिय संखेजा सिय असंखजा, जहन्न पदे संखेना कोडाकोडीओ तिजमलपयस्स उवरि चउजमल पयस्स हेट्ठा एगूणतीसं ठाणाइ *38** एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वारसूत्र-चक्षुर्य मूल जैसा बेइन्द्रिय का कहा तैसा कहना. तेजस कार्माण शरीर का औदारिक शरीर जैसा कहना // 59 // अहो भगवन् ! मनुष्य के कितने औदारिक शरीर कहे हैं ? अहो गौतम ! दो प्रकार के औदारिक शरीर कहे हैं. तद्यथा-१ बंधेलक और 2 मूकेलक. इस में बंधेलक शरीर स्यात् असंख्यात हैं (संमूच्छिम मनुष्य आश्रिय) और स्यात् संख्यात हैं, (गर्भज मनुष्य आश्रिय) मनुष्य जघन्य पद में संख्यात क्रोडाकोड लोने, ने तीन जमल पद के ऊपर आठ अंक जितने जानना. और चौथे जमल पद से 39 अंक कम सुननीस अंक में क्रोडाक्रोड आधे उतने हैं. अथवा छड़े वर्ग मूल को पांचवे वर्ग मूल साथ गुनाकार करे उतने हैं. वे इस प्रकार-एक से गिनती नहीं चलने से दो से लेते हैं. 242-4 यह प्रथम वर्ग मूल, 444-16 यह दसरा वर्ग मूल, 16416=156 यह तीसरा वर्ग मूल, 5. 2564256%65536 वह चौथा वर्ग मूल, 65530465536-4294967296 यह पांचवा वर्ग 488488.प्रमाण का विषय 2880 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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