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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 खेजाइ उस्सणिणांउ ओसप्पिणिओ कालओ खेत्तओ अंगुलपयरस्स आवलियाएय असंखेजइ, भाग पलिभागेण,मुक्केलया जहा ओहिया ओरालिया सरीरातहा भाणियव्वा, बेउन्विय आहारग सरोरा बंडेलगा नत्थी, मुक्केलया जहा ओरालिया सरीरा तहा भाणियव्वा, तेयग कम्मग सरीरा जहा एतोस चेव ओरालिय सरीरा तहा एकत्रिंशतम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल 488-887 प्रमाण का विषय 8 जितनी श्रेणि के आकाश प्रदेश हों. अब दूसरा पक्ष कहते हैं-बेइन्द्रिय के बंधेलक औदारिक शरीर कहना. संपूर्ण प्रतर में अंगुल के असंख्यातवे भाग में जितने प्रदेश आवे उतने खंड ऊपर आवालिकाके से असंख्यातवे भाग जितने पावे उतने समय 2 पूर्वोक्त खंड के ऊपर एकेक बेइन्द्रिय जीव रखते जितने प्रतर पूर्ण होवे उतने खंड आवलिका के असंख्यात समय में रखते 2 असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी 4 व्यतीत होजावे इतने बेइन्द्रिय जीव हैं. यह काल से, और क्षेत्र से अंगुल प्रतर रूप क्षेत्र का असंख्यातवा भाग उस पर आवलिका रूप जो काल-उन का असंख्यातवा भाग (अंग) उस पर एकेक बेइन्द्रिय पूर्वोक्त खंड पर रखते जावे तो असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी बीत जावे इतने बेइन्द्रिय हैं.. मूकेलक जैसा औधिक औदारिक का कहा तैसा कहना. बेइन्द्रिय वैक्रेय और आहारक शरीर बंधेलक नहीं है, और मूकेलक औदारिक शरीर जैसा कहना. तेजस कार्माण शरीर का जैसा इन के औदारिक air 388 888 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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