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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 256 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी छब्बीसं सागरोवमाई, मज्झिम मज्झिप गेवेजग देवाणं जहप्पणं छब्बीस सागरोवमाई उक्कोस्रणं सत्तावीसं सागरोवमाई, मझिम उवरिम गेविजग देवाणं जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई, उबरिमहेट्ठिम गैवेजग. देवाणं जहणणं आढवीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं एगुणतीस सागरोधमाई, उवरिम मज्झिय गेवेजग देवाणं जहणणं गणतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई, उवरिम उवरिम गेवेज्जग देवाणं जहण्णेणं तीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं एगतीसं सागरोबमाई, विजय वेजयंत जयंत अपरिजित विमाणेसुणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं द्विती पण्णता ? गोयमा ! जहन्नं एगतीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं प्रकाशक-रानावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ऊपर की ग्रेवेयक के देवता की जघन्य सत्तावीस सागरोपम की उत्कृष्ट अठावीस सागरोपम की. ऊपर के नीचे के ग्रेवेयक के देवता की जघन्य अठावीस सागरोपम की उत्कृष्ट गुनतीस सागरोपम की, ऊपर के मध्य के ग्रैवेयक के देवता की जघन्य गुनतीस सागरोपम की उत्कृष्ट तीस सागरोपम की. अपर के ऊपर की प्रैवेयक के देवता की जघन्य तीस सागरोपम की, उत्कृष्ट इकतीस सागशेपम की. विजय वैजयंत जयंत अपराजित इन चार अनुत्तर विमानवासी देवता की जघन्य इकतीस सागरोपम की उत्कृष्टतेतीस सागरोपम की. अहो भगवन ! सर्वार्थ सिद्ध महा विमानवासी देवता की कितने काल की स्थिति कही है ? अहो For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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