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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 234 १.अनुवादक वा ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी - एगास भवे परिमाण।एएहिं ववहारि एहिं अद्ध पलिउवम सागरोवमेहिं किं पयोयण।एएहिं ववहारिएहि अडा पलिउवमेहिं सागरोवमेहिं नत्थि किंचि पयोयणं, केवल पण घणा पणविजंति, से तं ववहारिए अद्या पलिओवमे // 3: n से कि त सुहुमे अहा पलिओवमे-से जहा नामए पल्ले सिया जोयणं आयाम विक्खंभे, जोयणं उव्वेहेणं. तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, सेणं पल्लेए मडिया प्याहिया तेयाहिया जाव ससरत्त पसूढाणं, संसट्टे सन्निविए, भरिहे वालमाण कोडीण, तत्थणं एगमेगे वालेग्गे असंखज्जाइ खंडाइ कज्जाइ, तेणं बालग्गा दिट्ठीणं उग्गहणाओ असंखजइमे पाले खाली होवे इतने वर्षों के समूह को एक व्यहारिक अद्धा सागरोपम कहना. अहो भगवन् ! इस F व्यवहार अदा पल्योपम सागरोषम से क्या प्रयोजन है ! अहो शिष्य ! इस व्यवहार अद्धा पल्योपम सागरोपम से कुछ भी प्रयोजन नहीं है, फक्त प्रमाण मात्र बताया है. यह व्यवहार अद्धा पल्योपम कहा. // 32 // अहो भगवन् ! सूक्ष्म अद्धा पल्योपम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! म अद्धा पल्योपम सो यथा दृष्टांत-उक्त प्रकार का ही पाला एक योजम का लम्बा चौडा यावत् त्रिगुनी परधी बाला उस * पाले को एक दिन के दोदिन के तीन दिन के यावत् सातदिन के जन्मे बच्चे के बालाग्र ग्रहण कर उनमें से एकेक वालग्रह के असंख्यात खण्ड करे, वे ऐसे सूक्ष्म होजावे की वे दृष्टीसे देखसके न *प्रकाशक-राजाबहादुर लामा मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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