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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 43803 एकार्षशतम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्य मूल 288 बेआहिया तेआहिया उक्कोसेणं सत्तरत्त परूढाणं संसट्टे सनिवविते भरते वालग्गकोडीणं तत्थणं एगमगे बालग्गे अखि लाई खेडाईकजइ तेणं वालग्गा दिदिउगाहणाउ असंखेजति भागमे ना सुहुमस्स पणगजीवरस सरीरोगाहणाउ असंखेजगुण.. तेणं वालग्गा, नो अग्गीडहेजा नो वाउहरेजा, नो पलिविडंसेज्जा, नो पूइत्ताए .. च्छेज्जा, तउणं समए 2 एगमेगे वालग्ग अवहाय जावइएणं कालेणं से ...'नीरए निलेवे णिट्ठिए भवति से तं सुहुमे उद्धार पलिओवमे // एएसिं पल्लाणं तीन दिन के उत्कृष्ट सात दिन मे जन्मे बच्चे के बालाग्र उस एकेक बालाग्र के असंख्यात २खण्ड (टुकरे)। E, इतने बारीक हों जावें की जो दृष्टी के ग्राह्य में नहीं आवें. क्यों कि उनकी अवगाना अंगुल | के असंख्यातवे भाग होने से देखा नहीं. वह बालग्र सूक्ष्म फूलन में रहे जो जीपों हैं उनके शरीर की अवगाहना से असंख्यात गुना अधिक बडा जानना. ऐसे वालाग्र कर उस पाले को ऐसा ठोस 2 / कर भरे कि उसे अग्नि जला सके नहीं वायु उडासके नहीं, पानी सडा सके नहीं निाश पा सके मही कदापि दुध को प्राप्त होवे नहीं.फिर उन बालाब में से एकेक बालाग्र समय 2 में हरण कर निकालेले 24 जितने काल में वह पाला खाली होवे रज रहित लेप रहित होवे अर्थात् सब बालाग्र सुट जावे उस में | एक भी वालाग्र रहे नहीं उतने काल के समुह को एक सूक्ष्म उद्धार पल्योपम कहना. और ऐसे दशा प्रणा विषय " 488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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