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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 48 p एकार्यशतम-अनुयोगद्वार मूत्र चतुर्य मूल जतिभागं. उनोसणं जोयण सहस्सं. अप्पजत गम्भवतिय उरपरिसप्प थलयर पुच्छा ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं, उक्कोसणंवि अंगुलस्स असंखेजति भाग, पजत्तग गन्भवतिय उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय पुच्छा ? गोयमा / जहन्नेणं अंगुलरस असंखेजतिभागं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं // भुय परिसप्प थलयर पंचिंदिय पुच्छा ? गोयमा ! जहन्न अंगुलस्स असंखजात भाग, उक्कोसेणं गाउपहुत्तं, समुच्छिम भुयपरिसप्प थलयर पुच्छा? गोयमा ! ___ जहन्नं अंगुलस्स असंखजति भागं, उक्कोसेणं, धणु पुहत्तं; अपजत्तग समुच्छिम भुयपरिसप्ष थलयर पुच्छा ? गोयमा ! जहनेणं अंगुलस्स असंखेजति भागं उक्कोसेणंवि अंगुलस्स असंखेजति भागं, समुच्छिम भयपरिसप्प थलयर की. भजपरिसर्प थलचर की जघन्य अंगल के असंख्यातघे भाग उत्कृष्ट पृथक्त्व गाऊ की, संमूच्छिम भुजपरिसर्प की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट धनुष्य पृथक्त्व की, अपर्याप्त समूछिम भुजपर सर्प की जघन्य उत्कृष्ठ अंगुल का असंख्यातवा भाग, पर्याप्त समूचिम भुजपर सर्प की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट पृथक्त्व धनुष्य की. गर्भज भुजपर सर्प की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे. भाग उत्कृष्ट गाऊ पृथक्त्व की, अपर्याप्त गर्भज भुजपर सर्प की जघन्य उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यात भाग, पर्याप्त गर्मज भुजपरिसर्प स्थलचर की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे माग उत्कृष्ट पृथक्त गाऊ अर्थ/ प्रमाण का विषय 4848 488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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