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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक शापिनी मो आगमतो भावावस्मयं तिविहं पणत्तं तंजहा-लोइयं, कुप्परावयणिय, लोगुत्तरिय // 22 // से किं तं लोइयं भावावस्सयं ? लोइयं भावावस्सयं-पुचण्हे भारहं, भवरण्हे रामायणं, से तं लोइयं भावावस्मयं // 23 // से किं तं कुप्परावयणियं भावावस्सयं? कप्परावयणियं भावावस्सयं जे इमे-चरग चीरिग जाव पासंडत्थासयं, इजं. जलि होम जपोंदुरुक्क नमोकारमाइआई भावावस्सयाई करेंति, से तं कुप्परावयाणियं भावावस्सयं // 24 // से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सय ? लोगुत्तरियं भावावस्स. नो आगम से भाव आवश्यक किसे कहते हैं ! जो आगम से भाव आवश्यकके सीन भेद कहे हैं लौकिक, 2 कुपावनिक, और 3 लोकोत्तर. // 22 // अहो भगवन् ! लौकिक भाव आवश्यक किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पूर्वोक्त प्रकार प्रातः काल में भारत और संध्या काल में रामायण का भाव सहित पठन पाठन करते हैं वह लौकिक भाव आवश्यक // 23 // अहो भगवन् ! कुमावनिक भाव आवश्यक किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उक्त प्रकार के चरक, वस्त्र खंड धारन करनेवाले यावत् पाखंडी इष्ट देवका अंजली जोडकर नमस्कार करे.यज्ञ हवन.पूजा.जप, और मुख से बैल जैसे शब्दोच्चार करके नमस्कार करे इस्पाद भाव आदर करते हैं वह कुशावनिक भाव आवश्यक है।॥२४॥अहो मगवन् ! लोको प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहाथजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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