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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न 187 भाइया 64, 6 अहमाणी 128, 7 माणी 256. दो चउसट्रियाओ. स. माणाउ बीसिया // 1 // दो बत्तीसियाउ, सोलसियाउ, दोलोलसियाओ. मानिया, दो अट्रभागिया, चउभागिया, दो चउभागीयाउ, अद्धमाणी दो अडी , माणी || एएणं रसमाण प्रमाणं किं पऔषणं ? एएणं रममाण माणेगा-१ धारक 2 घडक, 3 करक, कलस, 5 ककरि, 6 दइय,७करोडिय ८ऋडिय;९सित्ताणं रसाणं. रसमाण पमाणं निवत्ति लवखणं भवति।सेतरसमाण 1 प्रमाणे से तंमाणे ॥४॥से किं तं उम्माणे ! जणं उमिणिजइ तंजहः-१ 484284887 प्रमाण विषय 8-40+ अर्थ -48एकाशप-बनयोगद्वार -चतुर्य चौथा भाग प्रमाण वह चरभाइया. आधीमाणी सो अधपा, और 256 पलवी एक पीमाणी. चार पलपण चौसीमा, वैसे दो चौसठीया. चार पत्र प्रमाण पत्रीसीया, दो बत्तीसीया का सोलसिना दो लोलसीयाका अठभागीया. दो अठभागीया का चभागीया, दो चउभागीया की आधोयाणी दो श्राधीमाणी, की पूरीमणी. // अहो भगवन् इस प्रमाण का प्रयोजन है ? अहो शिष्य इस रस प्रमाण से , पहा. घडा. 2 छोठा कंभ. 3 गागर. 4 कलश. 5 दीवडी-वत्थी. 6 कगेडिय. 7 इंडी. 8 संस्तिक-पली. शार चमचा रसमान प्रमान से इन का निवृति लक्षण प्रमाण होता है. यह रस मान प्रमाण दुवा // और यह मान भी हुवा // 4 // अहो भगवन ! उन्मान किसे कहते हैं? ओ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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