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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र अर्थ शत्तम अनुयागद्वार सूत्र चतुर्थ मूल 4 गाणिमे, 5 पडिमाणे // 2 // से किं तं माणे ? माणे दुविहे पणना तंजहाधन्नमाण पमाणेय, रसमाण प्पमाणेय // से किं तं धन्नमाण प्पमाणे ? धन्नमाण प्पमाणे दो असपा उपसती, दो पसिउ सातती, चत्तारिसेइ आउकुल ओ, चत्तारि कुल या पत्यो, चत्तारि पत्थो आढगं,चत्तारि आढगाइ दोणो, सद्विआढयाइ जहन्नए कुंभे, असीति आढयाई मज्झम कुंभे, आढगसयं उक्कोसए कुंभे, अट्ठसय आढय. उन्मान, 3 ओमान, 4 गाणतमान और 5 प्रतिमान // 2 // अहो भगवन् ! मान किसे कहते हैं ? अहे. शिष्य ! मान के दो प्रकार कहे है तद्यथा-धान्य के मान का प्रमाण और 2 रस के मानका प्रमाण // अहो भगवन् ! धान्य के मान का प्रमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य धान्य के मानका प्रमाण सो दोनों हाथ की हथेलीयों मिलनेमे एक पसली हो. दोपसलीकी एकसेती * चार सेती एक कुबड, चार कुबड एक पात्याचार पाथा का एक अढक,चार अढक का एक द्रोण,साठ अढकका जघन्य कुंभ,अस्सी अढक का मध्यम कुंभ.सो अढक का उत्कृष्ठ कुंभ. एकसो आठ अढक का एक वाहो,अहो भगवन यह धान्य मान प्रमाण से क्या प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! इस धान्य मान प्रमानकर-१ मुक्तोली-कोटी, 2 मुख-बडी कोठी, इदर___* यह मगध देशका मान कहते हैं. OPPREमाण ग विषय 8 8 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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