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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 80 स आलवतेविबलीय भालए, सेतं पडिवरखपदेणं // से किंतं पहाणयाए ? पहाणयाए असोगवणे, सत्तियणे, गवणे, चुरानो नो पारे, उच्छवणे,दक्खवणे. सालवणे, सेतं पहनना कि मारि दिय सिद्धतणं ! धम्मत्थिकाए, अयमा स्थिकार, गारिया, जयस्थिकाए, पुग्गलस्थिकाए, अद्धासमए. सेतं अगादिय सिहते से कितं नाणं ? नामेणं ! पिडपियाम विसम अनुयोगहार सूत्र-चतुर्थ मूल र प्रतिपक्ष वचन उच्चारण करतानापाको गतिपक्ष धर्म कहते हैं, जो भगवन् ! प्रधान नाम किसे कहते हैं? अशिप्याबहुत पदार्थाने पर जो अधिक हो उस नाम से खेला जावेसो प्रधान नाम जैसे कि-अशोक वृक्ष होने से अश्यपके ऐसही साबित करन साश्रयन नागनापुभागवन शुनन,श लवन इत्यादि प्रधान नाम जालना. अहो भगवन् ! अनादि का डिले हहते है ! अहो शिष्य ? अनादि सिद्ध नाम सो धर्मास्ति काया, अधर्मारित काया. शशास्ति काया, बारित काया पुद्गलाति काया. और अद्धा समय यह अनादि सिद्ध नाय है अहो या ! नाम पर किसे कहते हैं ? अहं विय ? जापित पितामह के नाम से नाम निप्पन्न होता है और उसी से प्रसिद्धि को भी प्राप्त हो जाता है जैसे सेतली घुत्र, वरुण, मागर्नत्तुआ, मया पुत्रा, थायर्चा पुत्र इत्यादि सर्व नाम से निष्पन्न नाम पद है. अहो 388 नाम विषय 28 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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