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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वंति // 3 // तत्तिया करणंमि कया, भणियं च कपंच तेणं वा मएवा // हंदिणमो साहाए हवइ चउत्थीसं पयामि // 4 // अवणय गिण्हएत्तो, एउत्तिवा पंचमी अपायाणे ॥छट्री तस्सइमस्स, वागयस्सवासामि संबंधे।। ५॥हवइ पुणसत्तमी तंइमंमि आहार काल भावेय // आमंतणी भवे अट्ठमिउ, जहाहे जुबाणेति // 6 // सेतं अभी नामे // 125 // से किंतं नव नामे ? नव नामे ! नव कव्वरसा - एकात्रंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 438 अयं, पर उपदेश में द्वितीया होती हैं. जैसे शास्त्रं पढ, कार्यं कुरु अर्थात् शास्त्र का अभ्यास कर और कार्य कर. // 3 // करण में तृतीया विभक्ति होती है पढितं वा कृतं तेन मया वा अर्थात् / अथवा तैने अभ्यास किया या कार्य किया. चतुर्थी संप्रान नमः स्वाहा: अनये. अर्थात् अग्नि देवता को नमस्कार पांचवी विभक्ति अपादान में होती है जैसे एतस्माद् दूरं अपनय, अर्थात् इस से दूर करो, षष्टी स्वामी संबंध में राज्ञःपुरुषः राजा का पुरुष // 5 // सप्तमी विभक्ति आधार में होती है तथा काल और भाव में भी होजाती है जैसे प्रधो रमते अर्थात् वसंत मास में लोग क्रीडा करते हैं यह काल में सप्तमी हुइ अथवा चारित्रेऽवतिष्ठते-अर्थात् चारित्र में रहा है यह भाव में सप्तमी हुइ. आठवी विभक्तिं आमंत्रण में जैसे हे युवान् ! यह अष्टमी विभक्ति हुइ. यह आठ नाम का कथम दुवा. // 125 / ' 487ags नाम विषय 488488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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