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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आडंबरोयरेवइयं, महा भेरीय सत्तमं // 7 // एते सिणं ससहं सराणं, सत्तसर लक्खणा पणत्ता तंजहा-(गाहा)सजेण लहइवितं, कयंचण विणस्सहागावो पुत्ताय मित्ताय // णारीणं होइ वल्लहो // 8 // रिसहेणओ एसज्जं सेणावच्चं धणाणिय वथ गंध मलंकारं, इत्थीओ सयणाणिय // 9 // गंधारे गिइ जुत्तिन्ना, विजवित्ति 348488 अर्थ एकशिचम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्व मूल 288+ उच्चारण करता है. यह सर्व एक अंश को ले कर इन के उदाहरण दिये गये हैं. // 6-7 // इनमें सात स्वर के सात लक्षण कहे हैं. जैसे जिस व्यक्ति का षड्ज स्वर होता है उस की आजीवि का ठीक होती है उसके द्वारा उसे धन की प्राप्ति होती है, उस का किया हुवा कार्य सब को माननीय होना है, गौ आदि पुत्र वा मित्र उस के बहुत होते हैं. नारी जनों को वह भी बहुत वालम होता है, सो इन के द्वारा प्रथम षड्ज स्वर की लक्ष्यता होती है. // 8 // रिषभ स्वर के महान्य से ऐश्वर्व भाव सेनापति और धन का अतीव संग्रह व मुगंध अलंकार स्त्रियें पर्यकादि सर्व प्रकार से प्राप्त होता हैं. और इन लक्षणों से निश्चय होता है कि इस व्यक्ति का रिषभ स्वर है. // 9 // गांभर स्वर वाला गीतों के ज्ञान का गीतज्ञ होता है और जिस की संसार में प्रधान आजीविका होती है, पनः कामो में प्रवीण होता है. इस स्वर को जानने वाले बुद्धिवान कवि होते है और अन्य दादी शास्त्र के नाम विषय +8898 88 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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