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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1.9% एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल पंकप्पहा, धूमपहा, तमा, तमतमा, सोहम्मे जाव अचुए, गेवजे, अणुत्तरे, इसि, प्पभाग, परमाणुपोग्गले. दुपदसिए जाव अणतपदेसिए से तं सादि पारिणामिए // से किं तं आणादि परिणामिर ? अणादि पारिगामिए अणेगरिहे पणते तंजहाधम्मरिथकाए, अधम्मत्यिकाए, आमासस्थिकाए. जीवत्यिकाए, पोग्गलस्थिकाए, अड समए, लोए, अलोए, भवसिद्धियाए, अभयसिद्धियाए, से तं अणादि पारिणामिए // से तं पारिणामिए // 16 // से किं तं सन्निवाइ नामे ? सन्निवाइए नामे जण्णं एतेसिं चेव उदइए उक्सभिए, खईए. खउवसभिए, पारिणामियाणं भावाणं प्रभा, बालुसमा, पंक प्रभा, धून प्रभा तम प्रभा तपतपप्रभा, मोधर्म देवलोक यावत् अच्यत देवलोक. ग्रेवयक, अनुत्तर विमान, इपत्पागभार पृथ्वी, परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कंध यावत् अनंत प्रदेशिक . यह सादि परिणापिक, अही भगवन ! अमादि परिणामक किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अनादि परिणमिक के अनेक भेद कहे हैं तद्यथा-१ धरितकाया, 2 अधर्मास्ति काया, 3 आग. शास्ति काया, अद्धा समय, लोव, अलोक, भव्यासद्धि जीव, अभयसिद्रिक जीव यह अनादि परिणापिक हवा, यह परिणामिक भाव का कथन हवा // 16 // अहो भगवन् ! सनिपानिक भाब किसे कहते हैं? अहो शिष्य / समिपातिक भाव में उदार्थक, औपशमिक, क्षायिक, क्षयोपशमिक. इन 80-नाम विषय-30.488 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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