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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पण्णत्ता-इत्थी, पुरिसं, णपुसगं चेव // एएसि तिण्हंपिए अंतं परूवणं वोच्छं-तस्थ पुरिसस्त अंता-आई-ऊ-उदयी, चत्तारि ते इत्थियाओ हवात, जापरिहीणा आता. इति, उयिं अंताओ णपुसमस्स बोधव्वा / एतेसिं तिण्हंपिय वोच्छाम निदरिसालतो-आगारतो राया; इगारंतो-गिरीय सिहरीय, ऊकारंतो-विण्हू, उकारतो सुनोउ अंताओ पुरिसाणं, आगारतो-माला, इमारतो-सिरीय लच्छीय, ऊगारंतो भू, बडूय अंताऊइत्थी // अकारंत थर, ईकारतं पापुंनगं अच्छि, उकारत पाल महुच, अंतः णपुंसगाणं से तं मे ||108 // से किं तं चउणामे अर्थ व नसक. इन तीनों के अंताक्षर की प्ररूपणा करते हैं. पुरुष लिंगवाले ना के अंत में आकार. कार. अकार व उकार होते हैं, स्त्रीलिंगी नाम के अंत में आकार ईकार व ऊसार होने हैं, और अपुंसकलिंगी नाय के अंत में आकार. इकार व उकार हते हैं. इस में से पुरुष लिंग का जाहरण आकारांत में राया, इकारान्त में गिरिशिखरि, आकारांत में विराहू और उकारान्त में दुयोउ. यह पुरुष लिंग का कथन हुवा. स्त्रीलिंग में आका-ति में माला, इकारांत में श्री, लक्ष्मी, ऊकारांत में जन्बू, बहू यह स्त्रीलिंग के अंत्याक्षर का कथन हुवा. अब नपुंसक लिंग. अकारांत धान्य, इकारांत अच्छि और 17कारांत पीलु मदु यह नपुंसक लिंग के अंत का कथन हवा. यह तीन नाम का कपन हुवा // 108 // एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 8488 नाप विषय 20388 For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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