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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अविससिए समुच्छिम मणुस्से, विसेसिए पजसग समुच्छिम मणुस्सेय, अपजसग समुच्छिम मणुस्सेय // अविसेसिए गम्भवक्तांतिय मणुस्से, विसाए कम्मभूमिए, अकम्मभमिए अंतरदिवगेय॥संखेज वास्गउएय,असंखजवासाउएय, पजत्तउ अपज्जाउ भेदो भाणियन्वो // 10 // अविसेसिए देवे, विसेसिए-भवणवासी, वाणमंतरा, जोतिसीए, वेमाणिएय // अविसेसिए भवणवासी, विसेसिए- असुरकुमारे. नागकुमारे, सुवणकुमारे, विज्जुकुमारे, अग्गिकुमारे, दीवकुमारे, उदहिकुमारे, दिसाकुमारे, वाउकुमारे, थणियकुमारे, सव्वेसिपि अविसेसिय. विसेसिए, पजत्तग अपजत्तग भेदा भाणियन्वा // अविसेसिए वाणमंतर, विसेसिए-पिसाए, भूए, जक्खे, रक्खसे, पर्याप्त अपर्याप्त संमूछिम मनुष्य. * अविशेषक गर्भज मनुष्य विशेषिक कर्मभूमि, अकर्मभूमि व अंतर द्वीप इन तीनों के संख्यात वर्ष आयु वाले असंख्यात वर्ष आयु वाले,पर्याप्त व अपर्याप्त यों चार भेद है अविशेषक व विशेषक में करना // 10 // अविशेषक देव और विशेषक भवनवासी, वाणयंतर, में ज्योतिषी, व वैमानिक. अविशेषक में भवनवासी और विशेषक में 1 असुर कुमार, 2 माग कुमार, 3 T3 सुवर्ण कुमार, 4 विद्युत्कुमार, 5 अग्निकुमार, 6 दीपकमार. 7 उदधि कमार, 8 दिशाकुमार, * संमृहिम मनुष्य के पर्याप्त नहीं होते हैं परंतु भांगा उत्पन्न करने के लिये ही ग्रहण किये हैं. 4880 अनुवादकबाल ब्रह्मचारी श्री अमोलक मुानाम्ना प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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