SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पाण्डुलिपि- सम्पादन/65 "मोहेंजोदड़ो तथा हड़प्पा नामक दो नगरों के उत्खनन में न्यूनाधिक गहराई में जो विभिन्न वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं, उन सब पर एक-सी ही लिपि दिखाई देती है। इस लिपि में लिखित एक भी लम्बा प्रलेख उपलब्ध न होने से यह अनुमान किया जा सकता है कि इस युग के लोग चमड़े, लकड़ी या पत्तों पर लिखते होंगे, जो आर्द्र एवं क्षारयुक्त भूमि-प्रभाव से काफी समय पूर्व नष्ट हो गये होंगे। "1 प्रसार था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार प्रारम्भ में लिपि के माध्यम से जो कुछ सुरक्षित रखने की चेष्टा की गयी, उसके लिए भोजपत्र, ताड़पत्र, वृक्षों की छाल, लकड़ी आदि के पटल काम में लाये गये। इन वस्तुओं पर जो लेख अंकित किये गये, वे ही इस समय की पाण्डुलिपियाँ थे । डॉ. कत्रे का मत है कि “ई. पू. चौथी शताब्दी के अन्तिम चरण के नीरकोस के कथन के अनुसार, हिन्दू लोग तैयार किये गये मजबूत कपड़े पर लिखते थे तथा क्यू. क्यूर्टिस की टीप में इस सम्बन्ध में वृक्षों की कोमल छाल का उल्लेख मिलता है जो प्राचीन समय में भोजपत्र के उपयोग के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से संकेत करता है। ये दोनों विवरण ई.पू. 327-325 में भारत में लिखने के लिए दो भिन्न प्रकार की स्वदेशी सामग्री के प्रचलन का उल्लेख करते हैं । इसी तरह प्राचीन भारतीय शिलालेखों की लिपि के परीक्षण-निरीक्षण के निष्कर्ष भी उन साहित्यिक साक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिनके अनुसार, जैसा कि हमें ज्ञात हुआ है, ई. पू. पाँचवीं शताब्दी या उसके पहले से ही भारत में बड़े पैमाने पर लेखन - कला का "2 लेखन-कला का प्रारम्भ कब हुआ, इस पर विचार करते हुए डॉ. कत्रे ने जो विचार व्यक्त किये हैं, उनसे हम यह तात्पर्य निकाल सकते हैं कि भारत में प्राचीन काल में वे सभी लेख "पाण्डुलिपि " की पूर्ण सीमा में सम्मिलित थे, जो कपड़े, वृक्षों की छाल, भोजपत्र, ताड़पत्र, पाषाण, धातु आदि किसी भी प्रकार के पटल पर अंकित किए जाते थे I ऐतिहासिक और प्राकृतिक संघर्षो को झेलकर मानव प्रयास के फलस्वरूप प्राचीन काल की जो लिखित सामग्री आज तक सुरक्षित रह सकी है, उसमें भोजपत्र, कपसिपट, काष्ठपट्ट, ताड़पत्र, पाषाणखण्ड एवं कागज का उपयोग किया गया है। भोजपत्र पर खरोष्ठी लिपि में लिखित " धम्मपद" ग्रन्थ मिला है। कपसिपट पर सातवाहन युग में ग्रन्थ लिखे जाते थे, ऐसा डॉ. कत्रे का मत है। वे लिखते हैं कि “श्री बूलहर को जैसलमेर में रेशमी कपड़े का एक टुकड़ा मिला, जिस पर स्याही से जैनसूत्र सूचीबद्ध किये गये हैं तथा श्री पीटरसन को वि.सं. 1418 (1351-52 ई.) में अनहिलवाड़ पट्टन में कपड़े पर लिखित एक हस्तलिखित ग्रन्थ मिला । "3 विनयपिटक तथा जातकों में काष्ठपट्ट के प्रयोग का उल्लेख पाया जाता है । असम में एक काष्ठपट्ट-लेख मिला है, जो ऑक्सफोर्ड के बोडलियन संग्रहालय में सुरक्षित है। ह्वेनसांग ने ताड़पत्रों पर लेख अंकित करने का उल्लेख किया है । 1. मैकी, इण्डस सिविलिजेशन, पृ. 13. 2. डॉ. कत्रे, भारतीय पाठालोचन की भूमिका (अनुवाद), पृ. 4-5. 3. डॉ. कत्रे, भारतीय पाठालोचन की भूमिका, पृष्ठ 6. For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy