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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका मानविकी विषयों में विभिन्न भाषाओं, उनके साहित्य, इतिहास, दर्शनशास्त्र तथा ललितकलाओं की गणना की जाती है। इन विषयों में मानव की अनुभूति, चेतना और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण रहता है, अतः इनका अध्ययन अत्यन्त सूक्ष्म तत्त्व-चिन्तन और गंभीर विचार-विश्लेषण की अपेक्षा रखता है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में इन विषयों के अध्ययन की सुदीर्घ परम्परा मिलती है। अनेक शोध-प्रबन्ध लिखे जा चुके हैं तथा अनेक विषय पंजीकृत भी हैं; किन्तु,बहुत कम शोध-प्रबंध अनुसन्धान की प्रविधि के अनुसार लिखे गये हैं। जो शोध-प्रबंध प्रकाशित हुए हैं, उनमें समालोचनात्मक या वर्णनात्मक प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है । फलतः प्रमाण-पुष्ट निष्कर्षों का प्रायः अभाव रहता है। हिन्दी में अनुसंधान-प्रविधि के विवेचन की ओर बहुत कम विद्वानों का ध्यान गया है। जो ग्रंथ लिखे भी गये हैं, वे मानविकी विषयों की समग्र शोध-दृष्टि प्रस्तुत नहीं करते । उनमें केवल हिन्दी-साहित्य को लक्ष्य बनाकर कुछ तथ्यों पर विचार किया गया है और भाषा तथा साहित्य के क्षेत्र में हुए अनुसन्धान या पंजीकृत विषयों की सूची दे दी गई है। शोधकर्मियों को सदा एक ऐसे ग्रंथ का अभाव खटकता रहा है, जो संक्षिप्त तथा सुलझे हए ढंग से मानविकी विषयों की अनुसन्धान-प्रविधि पर प्रकाश डाल सके। प्रस्तुत पुस्तक इसी अभाव की पूर्ति की दिशा में एक प्रयास है। इसमें अनुसन्धान के स्वरूप और प्रविधि पर गंभीरता से विचार किया गया है। इस पुस्तक में इस बात की पूर्ण चेष्टा की गई है कि मूल विषय अनावश्यक उद्धरणों से बोझिल न होने पाये। शोधकर्मी शोध-प्रविधि का सहज रूप में शुद्ध परिज्ञान कर सकें- केवल यही मेरा मुख्य उद्देश्य रहा है। विभिन्न पाश्चात्य या प्राच्य विद्वानों ने किस-किस संदर्भ में क्या-क्या मत व्यक्त किये हैं, उनका जंगल प्रस्तुत करके और उनके मत-मतान्तर-गत सत्यासत्य के अन्वेषण में प्रवृत्त होकर शोधार्थियों के समक्ष मैं अधिक विद्वान तो सिद्ध हो सकता था तथा प्रकाशक से पृष्ठ-वृद्धि के कारण धन भी ले सकता था, For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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