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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 3. 4. www.kobatirth.org कोश निर्माण प्रविधि भाषिकी अध्ययन में कोश निर्माण का कार्य भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । शब्द-सम्पदा के अनेक स्रोत होते हैं। क्षेत्रीय बोलियों के शब्दों का संचय लोक-साहित्य तथा क्षेत्र - कार्य की उपलब्धियों के माध्यम से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। यह निश्चित है कि कोश - निर्माण के लिए शब्द-संकलन आवश्यक होता है । प्रत्येक शब्द को उसके शुद्ध उच्चारित रूप में ग्रहण किया जाए तथा उसके विभिन्न अर्थों को एकत्र किया जाए, फिर उनका कार्ड बनाकर वर्गीकरण किया जाए और इस प्रकार वर्गीकृत शब्दावली को विभिन्न अर्थों के साथ कोश-दृष्टि से प्रस्तुत किया जाए, तो उस भाषा या बोली के कोश का ऐसा मौलिक स्वरूप तैयार हो सकता है, जो उसके ऐतिहासिक विकास तथा व्यावहारिक स्वरूप को समझने में बहुत सहायक होगा। भाषिकी के क्षेत्र में यह कार्य अनेक शोधकर्ताओं की अपेक्षा रखता है, क्योंकि अभी भी अनेक बोलियों के कोशों का निर्माण नहीं हुआ है । शब्द-संग्रहकर्ता का दायित्व कोश निर्माण के लिए शोधकर्त्ता को अनेक बार शोध- सहायक नियुक्त करने पड़ते हैं । प्रायः बेरोजगार स्नातक इस कार्य में नियुक्त कर दिये जाते हैं। उनका उद्देश्य समय-यापन और जीविका प्राप्त करना मात्र होता है। फलतः वे न तो उतना श्रम करते हैं। जितना अपेक्षित है और न ही उतनी बुद्धि लगाते हैं या लगाने की क्षमता रखते हैं, जिसकी आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में शब्द-संग्रह ही अप्रामाणिक हो जाता है। अतः यह ध्यान रखना चाहिए कि शब्द-संग्रहकर्त्ता निम्नांकित निर्देशों का पालन करे : 1. 2. 5. 6. 7. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषिकी अनुसंधान-प्रविधि / 49 जिस क्षेत्र के लोगों के शब्द-संग्रह करने हों, उनमें घुलमिल कर आत्मीयता से शब्दों की सही पहचान करे । सहानुभूति और सहयोग के बिना शुद्ध शब्द तक पहुँचना या सही अर्थ को पकड़ना कठिन होता है । शब्दों के स्थानीय उच्चारण की पूर्ण रक्षा की जाए। शब्द-संग्रह के लिए विषयानुसार अलग-अलग प्रपत्रों का प्रयोग करना चाहिए, तथा पुनरुक्ति से बचना चाहिए। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, कोश-निर्माण कार्य बहुत कठिन कार्य है, इसलिए प्रायः शोधकर्ता इस कार्य से बचने की चेष्टा करते हैं। लेकिन अगर सही प्रविधि अपनाई वह निर्धारित वर्ग या क्षेत्र से ही ऐसे शब्दों का संग्रह करे, जो प्रचलित हों । वह उस वर्ग या क्षेत्र के सभी क्रियाकलापों, रीति-रिवाजों, खान-पान, रहन-सहन आदि से निकट का परिचय प्राप्त करे तथा उन्हीं प्रयोगों का संचय करे । शब्द जिस रूप में प्रयोग में आता हो उसी रूप में उसको लिखे । जिन शब्दों का कहावत - मुहावरों में प्रयोग हुआ हो, उनकी अर्थ-व्यंजना को सही रूप में समझने की क्षमता विकसित करे । For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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