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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललितकलाओं में अनुसंधान / 43 साहित्य में काव्य एक ऐसी ललित कला है, जिसमें चित्र का विशेष महत्त्व है । चित्रकार रंगों और तूलिकाओं से जो कार्य करता है, वही कार्य कवि अपनी शब्दावली से सम्पन्न करता है । वह भी मानस-चित्रों का निर्माण कर अपनी शब्दावली में उन्हें विभिन्न बिम्बों का रूप देता है। प्राचीन काल में कविताओं को चित्रों में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति भी आरंभ हुई थी। मध्यकाल में इसका पर्याप्त विकास हुआ। हिन्दी की रीतिकालीन कविता की पाण्डुपिलियाँ तैयार कराते समय राजा-महाराजाओं ने कलाकारों को छंदों के साथ चित्र अंकित करने की प्रेरणा भी दी। आज भी विभिन संग्रहालयों में ऐसी पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं जिनमें नायक-नायिकाओं की विभिन्न क्रीडाओं, राज- प्रासादों, उद्यानों आदि के चित्र कविताओं के साथ मिलते हैं। ये चित्र स्वर्ण-रजत तथा अन्य धातुओं का मिश्रण करके स्थायी रंगों से बनाये गये हैं। ऐसी पाण्डुलिपियों का कितना महत्त्व एवं मूल्य है, यह हर कोई व्यक्ति नहीं समझ सकता। दीवारों पर भी राजप्रासादों में दोहा आदि छंदों के साथ विभिन्न आकर्षक चित्र अंकित किये गये हैं जिनसे साहित्य और चित्रकला का अभिन्न सम्बन्ध प्रकट होता है। कला-शोधार्थी को इस सम्बन्ध का उद्घाटन एवं मूल्यांकन करना होता है। दोनों कलाओं के मूल में अनुभूतिगत एकता वर्तमान रहती है, केवल माध्यम एवं शिल्प का अंतर रहता है। यह अंतर ही साहित्य में चित्रकला की शोध प्रविधि को उसी प्रकार कुछ भिन्न बनाता है, जिस प्रकार इतिहास से भिन्न बनाता है 1 चित्रकला और दर्शनशास्त्र चित्रकला के साथ दर्शनशास्त्र का भी बहुत सम्बन्ध है । जहाँ कोई अनुभूति होती है, उसे जब कभी रचनात्मक स्वरूप मिलता है, तब दर्शनशास्त्र की भावभूमि अवश्य निर्मित हो जाती है। चित्रकार जब अपनी रचना में तन्मय हो जाता है तब उसके हृदय की स्फूर्ति विभिन्न विचारों को जन्म देती है। अतः चित्रकला के क्षेत्र में शोध करते समय दार्शनिक विचार - पद्धतियों का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है । उदाहरणार्थ, राधाकृष्ण की चित्रावली का अवलोकन करते समय कृष्ण-सम्बन्धी विभिन्न चिन्ता-धाराओं का सहारा लेना ही पड़ता है। चित्रकला और संगीत संगीत और साहित्य का तो अभिन्न सम्बन्ध है ही, चित्रकला से भी उसका बहुत पुराना नाता है। संगीत की विभिन्न ध्वनियों ॐ राग-रागनियों पर आधारित अनेक चित्र बनाये जाते हैं। इस सम्बन्ध में चित्रकला की कई शैलियाँ भी विकसित हुई हैं। अत: संगीत की राग-रागनियों को समझकर ही शोधार्थी कलाकृति का सही मूल्यांकन कर सकता है। शोध का एक उद्देश्य सत्यान्वेषण के अलावा सौन्दर्य की अनुभूति कराना भी है। यह कार्य संगीत का मर्मज्ञ शोधक ही चित्रकला में निष्पादित कर सकता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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