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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिहास की अनुसंधान-प्रविधि/33 शोध-प्रविधि के सोपान इतिहास जैसे गम्भीर विषय के शोधार्थी को मौलिक तथ्यों तक पहुँचने के लिए कई सोपानों से गुजरना होता है । टायनबी, वेल्स, टेगर्ट आदि विद्वानों ने यह माना है कि इतिहास कोरी घटनाओं और विशिष्ट व्यक्तियों के कार्य-कलापों का संकलन मात्र नहीं है, बल्कि इस विद्या से सामाजिक जीवन के विकास को समझने में सहायता मिलती है। अतीत की घटनाओं एवं संस्थाओं के क्रम-बद्ध, प्रामाणिक एवं व्यवस्थित वर्णन के माध्यम से सम्पन्न होता है। अतीत से ही वर्तमान की अधिकांश जीवन-पद्धति निर्धारित होती है । अतः इस सोपान पर गंभीर चिंतन एवं विवेक प्रयोग की आवश्यकता बराबर बनी रहती है। किसी भी समाज की वर्तमान सभ्यता एवं संस्कृति के स्रोत अतीत की घटनाओं में निहित रहते हैं। अतः इतिहास-सम्बन्धी शोध का कार्य अतीत को सही तथा निष्पक्ष ढंग से प्रामाणिक आधार पर समझने से ही सम्भव हो सकता है। प्रसिद्ध विद्वान “रेडक्लिफ बाउन" के मतानुसार वर्तमान काल में घटित होने वाली घटनाओं को अतीत काल में घटित हुई घटनाओं के क्रमिक विकास की एक कड़ी मानकर ही अध्ययन या शोध का कार्य अग्रसर होता है। प्राचीन आलेख, ग्रन्थ, सिक्के, मूर्तियाँ, शिलालेख, विभिन्न पुरानी गाथाएँ, लोक-कथाएँ आदि का अध्येता को निष्पक्ष एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना पड़ता है। इस कार्य के लिए उसमें अपने विषय-क्षेत्र की पूरी जानकारी रखने की क्षमता एवं सामाजिक अन्तदृष्टि होनी चाहिए। उसमें विश्वसनीय एवं सम्बद्ध तथ्यों का चयन करने का पूर्ण विवेक होना चाहिए। उसे यह भी ज्ञात होना चाहिए कि विषय की सीमा क्या है तथा पूर्वाग्रहों से वह स्वयं कितना दूर है ? शोधकर्ता को इतिहास के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए तभी प्रवृत्त होना चाहिए, जब वह अध्ययन की समस्या को सही ढंग से निर्धारित करने में समर्थ हो। अगर समस्या का ठीक निर्धारण नहीं होगा, तो वह सही दिशा में मौलिक अध्ययन नहीं कर सकेगा। समस्या की प्रकृति एवं क्षेत्र से भली प्रकार परिचित हो जाने के पश्चात् ही उसे अपने शोधकार्य में अग्रसर होना चाहिए। समस्या से सम्बन्धित यत्र-तत्र बिखरी सामग्री का संकलन करना एक आवश्यक कार्य होता है। जब तक प्रामाणिक ढंग से सामग्री एकत्र नहीं की जाती, तब तक अनुसंधान का कार्य आरंभ नहीं मानना चाहिए। यह कार्य सरल नहीं होता। किस सामग्री पर कितना और किन आधारों पर विश्वास किया जाए, यह प्रश्न सदा सामने खड़ा रहता है। जब तक शोधार्थी में एतदर्थ पर्याप्त योग्यता नहीं होगी, सामग्री की विश्वसनीयता के आधारों को पहचानने वाला अनुभव नहीं होगा और वह सदैव दूरदर्शिता से काम नहीं लेगा, तब तक उसका सामग्री-संकलन का कार्य सफल नहीं हो सकता। ___सामग्री-संकलन के उपरान्त शोधार्थी को उसमें से तथ्यान्वेषण करना होता है। यहाँ उसे तथ्यों की मात्रा एवं गुणों में समन्वय की दृष्टि अपनानी होती है। आवश्यकता से For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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