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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिहास की अनुसंधान-प्रविधि/ 31 द्वारा कुछ निष्कर्षो तक पहुँचा जा सकता है, किन्तु इतिहास में प्रयोग काम नहीं आते, प्रमाणों के सहारे ही सत्यान्वेषण किया जा सकता है। भारत में इतिहास की स्थिति भारत में इतिहास-लेखन की वैसी परम्परा नहीं रही, जैसी पाश्चात्य देशों में मिलती है। यहाँ काव्य, नाटक, पुराण आख्यान आदि के माध्यम से सुरक्षित रखा गया है, अतः उसमें कल्पना का मिश्रण भी हो गया है। किन्तु इतिहास के जिस व्यापक एवं विस्तृत फलक की अवधारणा भारत में इन माध्यमों के द्वारा प्रस्तुत की गई है, वैसी बहुत कम देशों में उपलब्ध है । साहित्य की विभिन्न शैलियों में जो इतिहास प्रस्तुत किया गया है, उसमें काल- विशेष का सर्वांगीण जीवन अपने समस्त रंगों में उद्भासित हो उठा है। शासन, समाज, संस्कृति और सभ्यता के अत्यन्त जीवन्त चित्र इस इतिहास में मिलते हैं। धर्म-प्रधान देश होने के कारण विभिन्न धार्मिक आचारों में भी इतिहास के तत्त्व छिपे मिलते हैं। साहित्य के अतिरिक्त विभिन्न ललितकलाओं के माध्यम से भी भारत का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास प्रस्तुत हुआ है । गुफाओं, भित्तियों, शिलाखण्डों, स्मारकों, पहाड़ियों आदि पर इतिहास की अनेक घटनाएँ विभिन्न रूपों में अंकित की गई है। देश की संस्कृति के अनेक अध्ययन इन कलाओं के माध्यम से उद्घाटित हुए हैं। इन अध्यायों को अभी तक पूर्णतः प्रकाश में लाने का काम नहीं हो पाया है। अनेक शिलालेख देश के जीते-जागते इतिहास की धरोहर बने अब भी शोधार्थियों की प्रतीक्षा में आँसू बहा रहे हैं और धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को नष्ट होते देख रहे हैं। पुराने शासकों द्वारा बनाई गई इमारतें, स्मारक, मंदिर आदि या तो खण्डहर होते जा रहे हैं या भू-समाधि लिये पड़े हैं। यही क्यों, बड़े-बड़े प्राचीन नगरों की रंग-बिरंगी सभ्यता भी भू-समाधि के लिए शोधार्थियों की प्रतीक्षा कर रही है सभय-समय पर भूमि की खुदाई में कहीं कोई मन्दिर मिलता है, कहीं मूर्तियाँ और कहीं बड़े-बड़े भवन, जो देश के प्राचीन इतिहास के अनेक नये अध्याय खोलते हैं। पुराने सिक्के भी निरन्तर मिलते चले जा रहे हैं, जो शासकों और उनके जीवन की घटनाओं पर नवीन प्रकाश डालते हैं। । लिखित सामग्री लिखित रूप में उपलब्ध सामग्री भी कम नहीं मिलती। प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालने वाली अनेक पाण्डुलिपियाँ अब भी व्यक्तियों, पीठों, भण्डारों, पुराने राव- राजाओं और नवाबों के यहाँ उपलब्ध हैं। शोधकर्त्ताओं ने इस सामग्री को संकलित कराने के लिए अनेक संस्थाओं को अनेक प्रकार का योग दिया है। इन पाण्डुलिपियों को सुरक्षित रखना एक बहुत बड़ी समस्या है। सुरक्षा के उपरान्त इनको पढ़ने और सही अर्थों तक पहुँचने की समस्या सामने आती है । अतः प्रत्येक शोधार्थी को शोध कार्य आरंभ करने से पूर्व इतिहास सम्बन्धी समस्त लिखित सामग्री को पढ़ सकने की योग्यता अर्जित करनी पड़ती है। किसी एक पाण्डुलिपि के आधार पर ही इतिहास के निर्णय संभव नहीं हो सकते, इसलिए इस बात For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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