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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानविकी विषय और अनुसंधान मानविकी विषय आरंभ में अध्ययन की सुविधा के लिए शिक्षा-क्षेत्र में कृषि, विज्ञान, वाणिज्य एवं कला आदि वर्ग बनाये गये थे, इन्हें संकाय कहा जाता है। विज्ञान और वाणिज्य के अन्तर्गत आने वाले विषयों के सम्बन्ध में संकाय की धारणा अधिकांशतः ठीक है, किन्तु “कला" संकाय के सम्बन्ध में यह माना जाता रहा है कि यह संज्ञा उपयुक्त नहीं है, क्योंकि “कला" से एक सीमित अर्थ का ज्ञान होता है। सामान्यतः “कला" शब्दचित्र,संगीत, नृत्य आदि के अर्थ में प्रचलित है। जबकि कला-संकाय में सम्मिलित विषयों का क्षेत्र इससे आगे जाता है। इसीलिए पुनर्विचार के पश्चात् यह मान्यता बनी कि जिन विषयों को कला संकाय में लिया जाता है, उनके लिए “मानविकी" शब्द अधिक उपयुक्त है। इसी मान्यता के आधार पर सभी विश्वविद्यालयों में “मानविकी" शब्द कला संकाय के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। मानविकी संकाय में उन विषयों को स्थान दिया गया है जिनकी प्रवृत्ति कलात्मक है। इनमें सभी भाषाओं के साहित्यों को प्रमुख रूप से सम्मिलित किया गया है। किन्तु चित्रकला, संगीत, कला, इतिहास तथा दर्शनशास्त्र को भी मानविकी विषय ही माना जाता है क्योंकि इनका सम्बन्ध मनुष्य की परिस्कारात्मक, चिन्तनात्मक एवं आकलनात्मक प्रवृत्तियों के कलात्मक उपयोग से अधिक है। मानविकी विषयों का परस्पर सम्बन्ध विविध भाषाओं के साहित्यों में रचनात्मक प्रवृत्ति समान रहती है। अतः शोध के क्षेत्र में उनको समान स्थान मिलता है। चित्रकला और संगीत कला की प्रवृत्तियाँ साहित्य से कुछ भिन्न है । इन कलाओं की अभिव्यक्ति साहित्य से केवल इस अर्थ में जुड़ी है कि दोनों का मूल स्रोत मनुष्य की भावना और कल्पना में निहित है। किन्तु साहित्यिक शब्द और अर्थ के माध्यम से अभिव्यक्त होता है, जबकि चित्रकला रंगों और फलक का सहारा For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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