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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुसंधान की परिभाषा एवं उद्देश्य / 5 अंश हो सकता है । अब विज्ञान इससे भी आगे बढ़ रहा है। यह शोध परिणाम विज्ञान की ही देन हो, ऐसा नहीं है, यह सत्य तो सांख्यकारों ने सदियों पहले मानव जाति को बता दिया था । उन्होंने तो परमाणु से भी आगे बढ़कर तन्मात्राओं को पदार्थ का न्यूनतम अंश घोषित किया था । किन्तु अभी तक प्रमाणों और प्रयोगों से इसे पुष्ट नहीं कर पाये हैं । अतः शोध का यह उद्देश्य भी नहीं भुलाया जा सकता कि पूर्व ज्ञात सत्य को भी प्रमाणित करके ही ग्रहण किया जाए । यहाँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शोध किसी भी प्रक्रिया से गुजरे, उसका मूलभूत उद्देश्य मानव-कल्याण ही होता है। मानविकी विषयों में हम शोध के इस उद्देश्य की स्थापना का ही बार-बार प्रयत्न करते हैं। विज्ञान में शोध का यह उद्देश्य कभी-कभी भुला दिया जाता है, इसीलिए संसार में संकट आते हैं तथा शोध पर किया गया श्रम और धन कभी-कभी बेकार सिद्ध हो जाता है। उदाहरण के लिए, "एटम बम” का आविष्कार शोध का परिणाम है, किनतु उससे मानव-कल्याण के स्थान पर भयंकर विनाश होता है। पहले पदार्थ (मैटर) तथा ऊर्जा (एनर्जी) दो भिन्न तत्त्व माने जाते थे, परन्तु नवीन शोध के फलस्वरूप दोनों को एक ही सिद्ध किया गया। आइंस्टाइन से प्रेरणा लेकर जर्मनी के वैज्ञानिक "हान" और "स्टासगान" ने पदार्थ को ऊर्जा में परिवर्तित करने के कार्य में सफलता प्राप्त की । शोध प्रक्रिया आगे बढ़ी। पता चला कि यूरेनियम पदार्थ को विशेष मात्रा में एक साथ रख देने पर परमाणु स्वतः टूटने लगते हैं जिससे भयंकर अग्नि निकलती है। इसी प्रक्रिया का परिणाम हुआ "एटम बम" का निर्माण । विज्ञान का यह शोध कार्य मानव-जाति के लिए अकल्याणकारी ही सिद्ध हुआ, जो शोध का कदापि उद्देश्य नहीं माना जा सकता । मानविकी विषयों में भी कभी-कभी शोध की दिशा अकल्याण की ओर मुड़ जाती है, मनुष्य के विचार और भाव कभी-कभी अणुबम से भी अधिक घातक सिद्ध होते हैं । अतः जो लोग मानविकी विषयों में अनुसंधानरत हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि शोध का परम उद्देश्य उन विचारों, भावों और अनुभवों का परिशोधन करना है, जो मानव जाति के कल्याण में सहभागी हो सकते हैं। जो विचार एक जाति या वर्ग के लिए कल्याणकारी हों और दूसरी जाति या वर्ग के लिए विनाशकारी सिद्ध हों, उसे शोध का लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए। ऐसे ज्ञान को प्रकाश में लाने से अधिक श्रेयस्कर यही होगा कि हम उसे अज्ञान के गर्त में सदा के लिए दबा दें। 1 For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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