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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि लगना, अनुसरण करना, पुनः करना आदि । “धा” धातु से बने “संधान” का अर्थ खोजना, निश्चित करना,लक्ष्य-केन्द्रित होना आदि होता है। अतः अनु + संधान से बने “ अनुसंधान" शब्द का अर्थ किसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर उसके पीछे लग जाना अर्थात् एकाग्र भाव से खोज करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त करना होता है। अंग्रेजी में अनुसंधान का पर्याय 'रिसर्च शब्द माना जाता है। इस शब्द की वेब्सटर की “थर्ड न्यू इण्टरनेशनल डिक्शनरी" में इस प्रकार व्याख्या की गई है _ "Careful or diligent search : a close searching (as after hidden treasure), studious inquiry or examination; esp. critical and exhaustive investigation or experimentation having for its aim the discovery of new facts and their correct interpretation, the revision of accepted conclusions, theories and laws, in the light of newly discovered facts or the practical applications of such new or revised conclusions theories. रिसर्च की यह परिभाषा बहुत व्यापक और विस्तृत है। वस्तुतः जिस अर्थ में आजकल अनुसंधान" शब्द का प्रयोग होता है,उसको पूर्णतः रिसर्च की उपर्युक्त परिभाषा में देखा जा सकता है। अतः शब्दार्थ की दृष्टि से “अनुसंधान” उतना व्यापक एवं विस्तृत अर्थ नहीं रखता,जितने व्यापक एवं विस्तृत अर्थ में,उसका ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आजकल प्रयोग होता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अनुसंधान एक ऐसा कार्य है, जिसे कठोर परिश्रम, विवेक, एकाग्रता, एकनिष्ठता, गंभीर अभिरुचि आदि के आधार पर सम्पन्न किया जाता है । इस कार्य के फलस्वरूप महत्त्वपूर्ण नवीन ज्ञान या ज्ञात तथ्यों का नवीन व्याख्यान मानव जाति को प्राप्त होता है। हिन्दी में अनुसंधान के कई पर्यायवाची शब्द हैं जिनमें कुछ प्रमुख शब्द हैंशोष, खोज अन्वेषण, गवेषणा एवं अनुशीलन । ये सभी शब्द अनुसंधान के लिए प्रयुक्त होते हैं, किन्तु शब्दार्थ की दृष्टि से प्रत्येक शब्द की एक सीमा है । 'शोध' शब्द में ज्ञान की शुद्धि का भाव रहता है। शोधकर्ता विस्मृत ज्ञान को पुनः प्रकाश में लाकर उसे शुद्ध रूप से प्रस्तुत करता है। अद्यावधि प्राप्त ज्ञान से उस विस्मृत ज्ञान का सम्बन्ध जोड़कर वह ज्ञान का विस्तार करता है। ज्ञान की क्रमबद्धता और शुद्धि तथा उसके सत्य का जीवनोपयोगी पक्ष शोधकर्ता की दृष्टि में रहता है। अतः 'शोध' शब्द में अनुसंधान के सभी पक्ष आ जाते है। सम्यक् रूप से किसी भी परिकल्पना के हल तक पहुंचने की प्रक्रिया शोध अर्थ को सूचित करती है। अतः शोध और अनुसंधान सभी दृष्टियों से एक-दूसरे के अधिक निकट है। जो तथ्य या सत्य ज्ञात है, उसको भी युग के अनुरूप परखना और शुद्ध करना पड़ता है। यह कार्य भी शोध या अनुसंधान की सीमा में आता है। अतीत का प्रत्येक ज्ञात तथ्य किसी युग के मानव-जीवन के लिए सर्वथा ग्राह्य ही हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। अत: उसकी भी पुनर्व्याख्या करनी पड़ती है, जो शोध के क्षेत्र में आती है। उदाहरण के लिए, For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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