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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 92 / अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि न होने के कारण भाषा की मूल अभिव्यक्ति को नहीं पा सका । जो अन्य ग्रंथ भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से शोध कार्य के रूप में प्रस्तुत हुए और जिनसे हिन्दी का अध्ययन आगे बढ़ा या उसकी बोलियों और उपभाषाओं का स्वरूप स्पष्ट हुआ, उनमें निम्नांकित को महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है : 2. 1. मैथिली भाषा की रूप-रचना ( 1944 ई), पटना विवि. श्री सुभद्रा झा । भोजपुरी भाषा की उत्पत्ति तथा विकास (1945 ई), प्रयाग विश्वविद्यालय - डॉ. उदयनारायण तिवारी । 6. www.kobatirth.org 3. हिन्दी अर्थ - विज्ञान (1954 ई), प्रयाग विश्वविद्यालय - डॉ. हरदेव बाहरी । 4. मुहावरा - मीमांसा (1949 ई), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय - डॉ. ओमप्रकाश । भोजपुरी ध्वनियों और ध्वनि-प्रक्रिया का अध्ययन (1950 ई), लंदन विश्वविद्यालय - डॉ. विश्वनाथ प्रसाद । 5. 7. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8. 9. ब्रजभाषा बनाम खड़ी बोली (1955 ई), आगरा विश्वविद्यालय - डॉ. कपिलदेव सिंह । कृषक - जीवन सम्बन्धी शब्दावली (1956 ई), आगरा विश्वविद्यालय - डॉ. अम्बा प्रसाद सुमन । हिन्दी अर्थ - विचार (1960 ई), कलकत्ता विश्वविद्यालय — डॉ. शिवनाथ । भक्तिकालीन हिन्दी सन्त साहित्य की भाषा (1960 ई), आगरा विश्वविद्यालय - डॉ. प्रेमनारायण शुक्ल । इन शोध-प्रबन्धों के अतिरिक्त जो शोध-प्रबन्ध भाषा वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से लिखे गये, उनको प्रकाशन के अभाव, विषय की सामान्यता अथवा विवेचन के उथलेपन के कारण भाषावैज्ञानिक ज्ञान-वृद्धि में अधिक सहायक नहीं माना जा सकता । साहित्य-सम्बन्धी शोध के दो रूप हैं- प्रथम प्रकार के शोध प्रबन्ध वे हैं, जो लोक-साहित्य के अनुसंधान को प्रस्तुत करते हैं और द्वितीय प्रकार के ग्रंथ शिष्ट- साहित्य का अन्वेषण करते हैं । प्रथम प्रकार के कार्य की परम्परा डॉ. जयकान्त मिश्र के शोध ग्रंथ “ मैथिली साहित्य का संक्षिप्त इतिहास" से आरंभ हुई थी। यह प्रबन्ध सन् 1948 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय में डी. फिल. के लिए स्वीकृत हुआ था । किन्तु यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हो सका। उसके पश्चात् सन् 1949 ई. में आगरा विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. के लिए डॉ. सत्येन्द्र का शोध-प्रबन्ध " ब्रज लोक-साहित्य का अध्ययन" स्वीकृत हुआ, जो प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रंथ ने लोक साहित्य के अध्ययन के लिए कई लोगों को प्रोत्साहित किया । सन् 1951 में डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय का " भोजपुरी लोक साहित्य का अध्ययन” ग्रंथ लखनऊ विश्वविद्यालय की पी-एच.डी. उपाधि के लिए स्वीकृत हुआ और सन् 1961 में इसका प्रकाशन भी हुआ। लोक-साहित्य के अध्ययन में इस ग्रंथ को एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कहा जा सकता है। “भोजपुरी लोकगाथा का अध्ययन" नाम से प्रकाशित डॉ. सत्यव्रत सिन्हा का डी. फिल. के लिए प्रयाग विश्वविद्यालय से 1953 में स्वीकृत शोध-ग्रंथ For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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